27 APR 2017 AT 23:39

पालते जिगर के टुकड़े को, वो बहुत नाज़ों से,
मा बाप की क़िस्मत, आजकल बाग़बानी है।।

भूल जाते हैं हमसब, उनके संघर्षों को,
इस क़दर उलझते हैं, अपनी बाग़बानी में।।

वो किलकता घर उनका, हो गया वीराना अब,
बोझ वो बने उनपर, उनसे जिनकी ज़िन्दगानी है।।

बात ये नई तो नहीं, क़िस्सा पुराना है,
थी जो कल मा बाप की, अब मेरी कहानी है।।

- शिखा ✍️