shikha thakur   (शिखा ✍️)
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Joined 7 March 2017


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Joined 7 March 2017
10 JAN 2022 AT 23:24

दिल भारी क्यों करना यारों, गम क्यों दिल मे भरना यारों,
कल का पता है नही किसी को, फिर क्यों हर पल मरना यारो।।

जीवन मे बदहाली क्यों है, ये दिल इतना ख़ाली क्यों है,
नही किसी को कद्र तुम्हारी, फिर क्यों इतना डरना यारों।।

लोग यहां मतलब के मारे, सच झूठ का भेद ख़त्म है,
सीधे सच्चे इंसानो का, नहीं यहां पर चलना यारों।।

बेगानो की भीड़ बहुत है, अपना तेरा कोई नही है,
फर्ज़ी दुनियादारी सबकी, फिर क्या सबपे मरना यारों।।

अपने फ़र्ज में डूबे रहना, नही किसी को ख़ुदा बनाना
अपने धुन में चलते रहना, दिल भारी क्यूं करना यारों।।

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27 DEC 2021 AT 22:56

तुम थे कुछ दिसंबर से,
मैं कुछ जनवरी सी थी,
तभी, तुम्हे मुझ तक पहुचने में महज एक लम्हा लगा,
मुझे तुम तक पहुंचते अरसे लग गए।।

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25 AUG 2021 AT 22:59

कहीं गुनगुनी धूप, तो कहीं बेहिसाब बारिश है,
ये मौसम भी कुछ - कुछ ज़िन्दगीनुमा हो गया है,
कब बदल जाए, कह नहीं सकते।।

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25 AUG 2021 AT 22:55

ज़िन्दगी सब को मिलती तो है एक सी,
कैसे जीते हैं हम, वो बात और है।।

कोई मेहरबां होता है, कोई मेहेरबानी लेता है,
हर क़िरदार के नीयत की, बात और है।।

बा-वफ़ा भी हैं यहां, तो बेवफ़ा भी कम नहीं,
हाँ मग़र नसीब की, बात और है।।

किसी की बातें बिकती हैं, किसी का कोई मोल नहीं,
कौन कितना ख़रीद सके, वो बात और है।।


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19 JUN 2021 AT 11:11

उठाते रहे हैं लोग
मेरी चुप्पी पर सवाल,
मैं जो फिर भी चुप रही,
वो खुद ही देते हैं जवाब।।

वो जो उनके जवाब थे,
जाने कब मेरा सच बन गए,
मुझसे फिर सवाल हुआ,
की तुम ये क्या कह गए?

मेरा सच जो मेरी बस चुप्पी थी,
उसमे उनके शब्दों ने ज़हर भर दिया,
जाने कैसे, इतनी आसानी से,
मेरा सच झूठ, और उनका झूठ, मेरा सच बन गया।

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27 MAY 2021 AT 11:12

मिज़ाज-ए-मौसम के भी क्या कहने,
कहीं मंज़र-ए-तबाही तो कहीं ख़ुशगवार शामें हैं।

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21 MAY 2021 AT 16:32

दिमाग की गुल होती बत्ती,
एक चुस्की में खोल दे,
प्यार से भी प्यारा लगे,
स्वाद चाय का।

काम लंबा हो,
दोस्त व्यस्त हों,
साथ खींच लाता है,
स्वाद चाय का।

मिज़ाज गर खराब हों,
काम भी बिगड़ जाए,
सब ठीक कर देता है,
स्वाद चाय का।

रह रहे हो घर से दूर,
संगी साथी साथ हो
तपड़ी पे खींच लाता है,
स्वाद चाय का।

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21 MAY 2021 AT 15:42

आंखों पे मेरे झूठ का,
पर्दा ऐसा पड़ गया,
घर मेरे सपनों का था,
वो रेत सा बिखर गया।।

नज़रों से ग़ैरत गई,
दिल भी कुछ ख़ाली हुआ,
एक हिस्सा वज़ूद का,
तिनकों जैसा उड़ गया।।

जिसके हक़ की लड़ाई थी,
उसने लड़नी छोड़ दी,
आग जिसकी लगाई थी,
वो ख़ुशी से भर गया।।

जब हुआ हमें इल्म सब,
देर तब तक हो गई,
देखते ही देखते,
एक घरौंदा जल गया।।

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17 MAY 2021 AT 19:04

यूँ तो तुम्हारी हर हरक़त,
मेरे दिल के तार, झनकार जाती है,
पर तुम्हारी मुस्कुराहट,
की बात और है।।

वो जो तुम्हारी अस्फुट आवाज़
मुझे बुलाती है ना, मेरे मन मे मोर नाच उठते हैं,
पर तुम्हारी मुस्कुराहट,
की बात और है।।

जब तुम्हारे नन्हे हाथ पैर,
मुझे छूते हैं, मेरे दिल को अलग सा सुकूँ मिलता है,
पर तुम्हारी मुस्कुराहट,
की बात और है।।

वो जो बिना दाँत के,
तुम्हारे होंठ, खुल के हंसते हैं, मेरी दुनिया खिल जाती है,
पर तुम्हारी मुस्कुराहट,
की बात और है।।

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15 NOV 2020 AT 19:45

कुछ दिए की रौशनी हो, कुछ हमारा दिल भी उजाले करे,
कुछ नई अच्छाइयां अपनाए हम, और दिवाली हो जाए !

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