नाटक "अंतिम उजाला" का एक अंशझूठ कहते हैं सब, कि आखिरी पड़ाव पर सब बराबर हो जातें हैं, हैसियत मौत के बाद भी अपना खेल खेलती है ...राख तो होना है बाबू, पर कितना राख बनोगे और कितना यहीं रह जाओगे ये हैसियत तय करती है ... - Kavi Shashi
नाटक "अंतिम उजाला" का एक अंशझूठ कहते हैं सब, कि आखिरी पड़ाव पर सब बराबर हो जातें हैं, हैसियत मौत के बाद भी अपना खेल खेलती है ...राख तो होना है बाबू, पर कितना राख बनोगे और कितना यहीं रह जाओगे ये हैसियत तय करती है ...
- Kavi Shashi