22 APR 2017 AT 20:42

नाटक "अंतिम उजाला" का एक अंश

झूठ कहते हैं सब, कि आखिरी पड़ाव पर सब बराबर हो जातें हैं, हैसियत मौत के बाद भी अपना खेल खेलती है ...

राख तो होना है बाबू, पर कितना राख बनोगे और कितना यहीं रह जाओगे ये हैसियत तय करती है ...

- Kavi Shashi