उसे उबरना था अपनी गलियों से
उसने कुछ सुंदर देश के नक्शे बनाए,
उसे अपने शहर की उदासी काटती थी
उसने हरे - भरे पेड़ सजाए!
वो जानता था पानी के अभाव का दर्द
वो झरनों की सुंदरता में खो गया!
उसे अपनी आवाज पसंद नहीं थी
वो सरगम के सुरों में सो गया।
वो जिंदगीं की हकीकत को हर बार
शब्दों की अचकनें पहनाता
वो उदास सुबह को अपने रंगों की
नई चुनर ओढाता!
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