Sarika Saxena   (Sarika Saxena)
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Joined 7 January 2017


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Joined 7 January 2017
12 JUL 2017 AT 10:49

पीते होंगे लोग चाय
वक़्त बेवक्त,
हम तो अपनी कॉफ़ी
का ही हर वक़्त दम भरते हैं,
वो चाय के दीवाने
कॉफ़ी की मुहब्बत
क्या समझेंगे।

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23 JUN 2017 AT 22:52

दहलीज़ पर दस्तक दे रही है रौनक़े ईद,
देखना है कि अब ईद का चाँद कब निकले।

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2 MAR 2017 AT 10:57

बौराया सा मौसम है
फागुन की अगुवाई में
खिला हुआ हर आँगन है
फागुन की अगुवाई में

झुकी हुयी है बौर के बोझ से
आम की डार पे कूहु कूहु
कोयल गान सुनाए है
फागुन की अगुवाई में

सरसों फूली, गेंदा फूला,
पीत रंग चहुँ ओर दिखे
टेसु, हरसिंगार खिले हैं
फागुन की अगुवाई में

रंग पिचकारी भर के मारी
अबीर, गुलाल की धूम उठी
गोरी क्यों शरमाये है
फागुन की अगुवाई में

-अभिसारिका

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26 AUG 2020 AT 11:34

उन्हें ऐतराज़ है मेरे हंसने से
मेरे बेवजह खिलखिलाने से,
मेरे खुल कर साँस लेने से,
मेरे बाल हवा में लहराने से,

उन्हें ऐतराज़ है मेरे कपड़ों से,
और मेरे संजीदा न होने से।
खुद अपने मन की करने से,
मेरे हमेशा ख़ुश रहने से।

ऐतराज़ है उन्हें मेरे कुछ भी करने से,
मेरे कुछ अलग हट कर करने से।
मेरे लीक पर न चलने से,
बस अपने मन की सुनने से।

शायद ऐतराज़ है उन्हें
मेरे लड़की होकर भी कुछ करने से
असल में लेकिन उन्हें ऐतराज़ है
बस मेरे लड़की होने से!

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9 AUG 2020 AT 16:38

नमस्ते साथियों !
मैंने YouTube पर कविताओं का एक चैनल शुरू किया है, “शब्दों की किताब “ के नाम से। आप लोग चाहे तो आकर सुन सकते हैं मेरी आवाज़ में। कवितायें, कहानियाँ, नज़्में और कुछ अनकही बातें।

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8 JUN 2020 AT 13:02

प्रेम का गाढ़ा चमकीला लाल रंग
होता बड़ा कच्चा है,
पहली बारिश में ही
धुल कर बह जाता है
रह जाता है बस
एक फीका, बेरंग अहसास
एक धब्बे सा चिपका रह जाता है
मन के सफ़ेद पन्नों पर!

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19 MAY 2020 AT 22:59


In my dream
I was working with
Ice and fire....
Sculpturing with my fingers...
My charred and frosted hands
were the art piece I was creating!

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3 MAY 2020 AT 21:29

ज़रूरी होते हैं कुछ दर्द
धड़कनों के स्पंदन से...
शूल की तरह बींधते हुए
साँस लेने तक से चुभते हुए...
तपकते हुए चोटिल और
घाव से रिसते हुए.....
सहमे हुए बाहर निकलने से
अंदर ही अंदर सब सहते हुए...
कभी खुल कर चीखते
बांध तोड़ कर बहते हए...
पर ज़रूरी भी होते हैं सब दर्द
ज़िंदगी को तराशते हुए!

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29 APR 2020 AT 9:40


लौ जल रही है जिनसे
है उनका शुक्रिया!
बाबू जी के नाम से
जलता है एक दिया।

मिट गया सब अंधेरा
वो ऐसे जगमगाये
जल रहे हैं दिलों में
बन कर के एक दिया।

कर दिया सहज मार्ग
उन्होंने हम सभी का,
रौशन कर दिया है हृदय
जला कर के एक दिया।

उनकी दया के वैसे
लायक़ कहाँ थे हम,
छू कर के हम पत्थरों को
पारस है कर दिया।

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27 APR 2020 AT 10:09

शामें, सुबहें और तारीकी रातें,
आते तो रोज़ हैं
पर कुछ उदास से लगते है..
दिन, हफ़्ते और महीने
गुज़र तो रहे हैं
पर बेमानी से लगते हैं...
वक्त गुज़र भी रहा है
और ठहरा भी है
मन की सतह पर बहुत उफ़ान है
और तलहटी में
एक गहन सन्नाटा
कुछ है जो सालता सा रहता है,
चुभता रहता है,
पर यही चुभन ही तो याद दिलाती है
कि अभी ज़िंदगी है...
ठहरी हुयी सी एक धड़कन
वक्त की अरगनी पर
टंगी हुयी है।

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