Sandhya Tetariya   (-भोर)
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Joined 5 April 2020


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Joined 5 April 2020
YESTERDAY AT 13:22

हे शिव प्रिय !
मेरे पास तुझे अर्पण करने के लिए
पुष्प,पत्र एवम् प्रेम मात्र था।
बलिदान के लिए मेरा अंहकार,
क्रोध, वासना एवम् किंचित समय था ।

भोग हेतु मदन दुग्ध,मधु,रसीले फ़ल
स्नान हेतु नयन जल,
सुवासित धूप चंदन एवम्
माधुर्य संजीवन सम औषधि थी।

मेरा सर्व समपर्ण ही मेरी भक्ति,भजन,
संध्या कीर्तन का मुखरित स्वरूप है ।

इससे अधिक कोई प्रेम भेंट क्या दे सकता था।

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25 APR AT 23:32

सज्जनता, मनुष्य जाति का ही गुण है। पाशविक होता समाज, इसे खोता जा रहा है।

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25 APR AT 22:40

मन बच्चा था।
जीवन का सपना सच्चा था।
हाय! खिलौना टूट गया,
अपना फिर कोई रूठ गया।

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25 APR AT 6:33

दिल की अरदास है ...

हम मिले न मिले नसीब से,
गुजरेंगे एक दिन करीब से।

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23 APR AT 12:49

बिछड़ जाने का ।
पर जानती हूं ...ढूंढ ही लूंगी अचानक तुम्हें!
छत पर बैठी किसी बड़े वृक्ष की डाली पर
बैठे दो पंक्षियों के प्रेम प्रलाप में,
डूबते चांद में जो बादलों के पीछे छुप रहा होगा
या बरसात के मौसम में जब पहली बूंद जमीन को चूमेंगी,
मेरे मन के आंगन में मयूर से तुम आ मिलोगे।
नहीं तो फिर लम्बी यात्राओं में गाड़ी की खिड़की से देखूंगी ...
उस क्षण तुम्हारा स्पर्श हवा बन मेरा चेहरा छू जायेगा ।
प्रेम जीवन यात्रा का आनंद है
और यात्रा का मतलब सफर जारी रखना है।

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22 APR AT 19:29

मशीन होने से बेहतर है‌।
मनुष्य से पशु पक्षी होना।

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22 APR AT 18:48

तोड़ देना आइना बार बार शौक है उनका।
हम भी मुस्कुरा के, एक से हजार होते हैं।

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22 APR AT 18:40

वार्ता, हर समस्या का समाधान हो सकती है।

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20 APR AT 13:33

हर हाल ,हर सवाल में।
जिद्दी दाग, छींटें कशी,
मुफलिसी की आग में।
रहमों ग़म, मल्हार सरगम
बेबस हंसी ,बंधे पांव में‌।
क्या वहम, जब मिले हम
बंद शहर, खुले गांव में।
बन मरहम पिघले ग़म
रात चंद्र की च़चल छांव मे।

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19 APR AT 15:42

हसरतों में मोहब्बत ।
मोहब्बत की हसरतें ।
कृष्ण राधा से भरे हैं ।
राधा में, कृष्ण की हरकतें ।

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