काली सी रात के इस पहर में,देखा खुद को जब आईने में,ना दिखा कुछ भी ऐसा,बनना था मुझको जैसा,सारे सपने अपने दफ़ना कर,छोड़ कर मैं अपना दर,चली आई अपने इस घर,अपनी ही पहचान भुला कर। -
काली सी रात के इस पहर में,देखा खुद को जब आईने में,ना दिखा कुछ भी ऐसा,बनना था मुझको जैसा,सारे सपने अपने दफ़ना कर,छोड़ कर मैं अपना दर,चली आई अपने इस घर,अपनी ही पहचान भुला कर।
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