29 MAR 2017 AT 18:48

ग़म ही तो है,
जीने का एक रंग ही तो है,
इसे भी माथे पर 'सज़ा' लो,
इसे भी प्यार करने की 'सजा' दो,
ना डर ना 'शिकन' का आलम होगा,
जब 'ख़ुद' ग़म ही तुम्हारा 'बालम' होगा,
तुम्हारा ग़म ही तुम्हारे साथ आँसू बहायेगा,
ख़ुद को रोता देख वो भी 'ठहाके' लगायेगा,
पछतायेगा अपनी ही 'तासीर' पर,
चल ना पायेगा माथे की 'लक़ीर' पर,
ख़ुद-ब-ख़ुद उठकर चला जायेगा,
जो रूठ गयी है तुमसे ख़ुशी...
उसे हाथ पकड़ फ़िर ले आयेगा।

जो ग़म को यूँ अपना लोगे
फ़िर कहाँ तुम तन्हा रहोगे
ग़म ही तो है...
जीने का एक रंग ही तो है....
- साकेत गर्ग

- साकेत गर्ग ’सागा’