आवारा सा वो बादलपानी भर कर उड़ रहा थाबरसना चाहता थामतवाला होकर चल रहा थाशायद मयख़ाने से आया थादूर कहीं जाना थाकिसी हसीन लबालब नदी से मिलना चाहता थाउड़ते-चलते जा टकराया उस निर्दोष चाँद सेजो खोया था किसी के दीदार में - साकेत गर्ग ’सागा’
आवारा सा वो बादलपानी भर कर उड़ रहा थाबरसना चाहता थामतवाला होकर चल रहा थाशायद मयख़ाने से आया थादूर कहीं जाना थाकिसी हसीन लबालब नदी से मिलना चाहता थाउड़ते-चलते जा टकराया उस निर्दोष चाँद सेजो खोया था किसी के दीदार में
- साकेत गर्ग ’सागा’