21 MAY 2017 AT 2:00

आवारा सा वो बादल
पानी भर कर उड़ रहा था
बरसना चाहता था
मतवाला होकर
चल रहा था
शायद मयख़ाने से आया था
दूर कहीं जाना था
किसी हसीन लबालब
नदी से मिलना चाहता था

उड़ते-चलते जा टकराया
उस निर्दोष चाँद से
जो खोया था
किसी के दीदार में

- साकेत गर्ग ’सागा’