मैं देखता हूँ तुम्हें,
आज भी वहीं जहाँ तुम कभी नहीं थी।
देखते देखते थक जाता हूँ,
पलकें झपकती नहीं हैं
आँखें पथरा जाती हैं,
आँसू निर्झर बहते हैं मेरी आँखों के ओट से।
मैं सुनता हूँ तुम्हें,
वैसे ही जैसे तुमने मुझे अनसुना किया था।
सुनता हूँ तुम्हें मेरे कानों में आहिस्ते से कहते हुए,
वे तीन शब्द, जिनकी माया से दुनिया ग्रस्त है।
किन्तु मेरे होंठ खिलखिलाते हैं,
मुस्कान स्वतःस्फूत होती है।
फिर वही कर्कश और वही लांछन,
जैसे कि मैंने जानबूझ कर
अपनी नियति निर्धारित की हो।
मैं सोचता हूँ तुम्हें,
आज भी जैसे तुम भी सोचती होगी मुझे।
जब तुम देखती होगी मुझे,
अपने मन मस्तिष्क के दर्पण में।
कितनी बातें बाकी थीं
कितनी यादें बनानी थीं हमें,
जिसके सहारे ये जीवन पार हो जाता।
चला जाता किसी नदी के मुहाने तक
विलीन हो जाता तुममें
और समय ठहर जाता सदा के लिए।
-