Rishabh Patel  
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Joined 14 December 2016


Joined 14 December 2016
29 APR 2017 AT 10:42

कभी यूँ ही ये ख्याल आता हैं मुझे,
सिर्फ़ तुम्हारे-मेरे लिखने से क्या होगा?
क्या फर्क पड़ेगा इस दुनिया पे,
जो अब इक लेखक और कम होगा!
सिर्फ़ तुम्हारे-मेरे लिखने से क्या होगा,
जब पढ़ने वाला ही ना लायक होगा?

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26 APR 2017 AT 12:55

चलो फिर से दोहराते हैं उस गुनाह-ए-अंजुमन को,
तू बस थोड़ा सा हँसा के रूला देना मुझे,
हम समझ लेंगे हमने तुझे आखिर पी ही लिया,
और तुम जान लेना एक और मिल गया दरिया मे डूबाने को।

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25 APR 2017 AT 20:35

बिना लड़खड़ा के चलना तो हम आज भी नहीं जानते,
बस गिर के संभलना सीख लिया हैं।

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25 APR 2017 AT 17:55

सितम कुछ इस कदर हैं उनके हम पर
कि सिर्फ़ काम व खातिर-मदरात के लिए याद आते हैं।

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24 APR 2017 AT 16:37

गालिब तो खैर गालिब हैं
उनसा कोई दूजा और कहाँ
आशिकी का जनाज़ा भी निकाला
तो निकाला सेहरा बाँध कर

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21 APR 2017 AT 8:43

खो के रोना,
रो कर हंसना,
हँसते हुए सँजोना,
सँजो कर खोना,
ही तो सीखा हैं,
मैंने जिंदगी से।

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17 APR 2017 AT 19:46

टूट के गिरना,
गिर के बिखरना,
बिखरे हुए बढ़ना,
बढते हुए टूटना,
ही तो सीखा हैं,
मैंने जिंदगी से।

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17 APR 2017 AT 19:25

हर रात जागा हूँ
मैं तेरे हर ख्वाब मे।

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17 APR 2017 AT 19:21

सोचता हूँ तुम्हें क्या दूँ
एक टूटा हुआ दिल,
बिखरे हुए अरमान,
रूठे हुए आँसू,
ही तो हैं मेरे पास।

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16 APR 2017 AT 11:50

मेरी कामयाबी तेरी
आशिक़ी कि मोहताज नहीं।
बिन तेरे इश्क के मैं डूब जाऊँ
अभी मेरी ऐसी औकात नहीं।।

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