कभी यूँ ही ये ख्याल आता हैं मुझे, सिर्फ़ तुम्हारे-मेरे लिखने से क्या होगा? क्या फर्क पड़ेगा इस दुनिया पे, जो अब इक लेखक और कम होगा! सिर्फ़ तुम्हारे-मेरे लिखने से क्या होगा, जब पढ़ने वाला ही ना लायक होगा?
चलो फिर से दोहराते हैं उस गुनाह-ए-अंजुमन को, तू बस थोड़ा सा हँसा के रूला देना मुझे, हम समझ लेंगे हमने तुझे आखिर पी ही लिया, और तुम जान लेना एक और मिल गया दरिया मे डूबाने को।