ऋषभ दीपा चोलकर   (ऋषभ चोलकर)
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Joined 21 March 2017


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मुझको तेरी दीद मुबारक
बाकी सबको ईद मुबारक

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स्‍वप्‍नाभास

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मिरे यार तू भी नहीं मिल पायेगा जनवरी से
मैं भी देखना दिसंबर में तमाम हो जाऊँगा।

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यूँ दीवानों को दीवाना कहना कहाँ तक मुनासिब है
ऐसा करो तुम हमको पागल कहा करो ।

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रात की व्यथा
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मैं इश्क़ के उरूज़ पर हूँ
मेरा इश्क़ बच्चों सा है।।

उसकी मुस्कान परियों सी
वो शख्स फ़रिश्तो सा है।।

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हल्ला न होता लड़ाई न होती
घर में बहन गर आई न होती

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तुझसे हमें शिकायत है बहुत
"दिल " तुझसे आहत है बहुत

मेरे दिल की सदा इक सदा रह गयी
तुझे मालूम है मुझे तेरी आदत है बहुत

मैं इश्क़ में नफ़रत लिखने लगा हूँ
शायद हमें तुझसे राहत है बहुत

हमने नुक़ूश को तेरे दफ़न किया था कहीं
आज उसे देखने की चाहत है बहुत

दर्द ए फिराक में हाल कैसा आज़ाद
विसाल ए यार की रियायत है बहुत

तू "फूल" है गर तो मैं "कांटा" ही सही
ये न भूल मुझसे तेरी हिफाज़त है बहुत

वो ज़रा से बात पे आह ओ फ़ुग़ाँ हुए है
लफ़्ज़ ए तल्ख़ में उनके इनायत है बहुत

वो नफ़रत के दरिया में डूबते जा रही है
एक मैं हूँ जिसे उससे मोहब्बत है बहुत

कभी मिलो तो हमारा सलाम पहुँचाना यारों
के "दिल" में उनके लिए "वज़ाहत" है बहुत

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वो कौन था सूरज सा जो अब तक न बुझा
वो जुगनू कैसा था जो अनवरत जलता रहा
बुझा जो अब तक नहीं अटल वो प्रकाश है
चाँद सूरज वही वही देख आकाश है।।

काल के कपाल पर जिसने कोई गीत लिखा
नहीं मानी हार जिसने जीत को हासिल किया
अटल सत्य है वही वह अटल सत्यवान है
"अटल" तू "महान" था अटल तू महान है।

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| सच |

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