Rhishabh Ravindra Ekawde   (Aristotle 2.0)
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Joined 2 May 2017


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16 MAR 2022 AT 13:06

कुठे शोधू मी तुझी सावली,
अंधार दाटला चोहकडे,
मनातले हितगुज सांगू कुणाला,
भावनांनी मिटल्या पापण्या,
शब्द राहिले मुके बापुडे,
उधाण वारा, मनी घोर करतो!
क्षुल्लक किती जिणे माझे तुझ्याविना,
जरी वाहिले वारे सारे,
तरी धग ही विरहाची काही संपेना!
कुठे शोधू मी तुझी सावली,
अंधार दाटला चोहकडे!

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3 JAN 2022 AT 21:31

तुम्हारी मुस्कुराती हुई तस्वीर जो देखा करते है,
तो जहन अपने आपसे सवाल करता है,
"क्या तुम हो इस मुस्कुराहट की वजह?
या उन्होंने नकाब ओढ़ना सीख लिया है?"
फिर सुलगी हुई सिगरेट के साथ हमारा वजूद भी
सुलगता हुआ छोड़कर हम
उसी किनारे समन्दर के बैठ जाते है,
और फिर कलम उठाकर बस्ते से, कागज पर
कुछ अल्फ़ाज़ भीगी आंखों के साए में,
लिख देते.....लिख देते है उन बातों को,
जिनका कोई माइना नहीं, बिना तुम्हारी सोहबत के,
फिर भी, बहला देते है दिल को,
इस आस में के शायद,
कहीं से तुम आ जाओ और कांधे पर
सिर अपना हलके से रखकर,
और मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर सहला दो,
और इस बात को जाहिर करते हुए,
के कितना खोखला है हमारा वजूद तुम्हारे बिना,
फिर से उसी बेखौफ हवा में बह जाओ।

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19 DEC 2021 AT 12:52

प्रभु रामचन्द्र कह गए सिया से,
ऐसा कलियुग आएगा।
पुष्पक प्रवासी फैलाएगा कोरोना,
राह चलता सज्जन मार खाएगा।।

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21 OCT 2021 AT 12:00

जैसे कल ही की बात हो,
हम बस्ता और बोतल लेकर स्कूल जाया करते थे,
और बोतल वहीं छोड़ के आया करते थे,
ये बात बैरखयाल!
ये बात आज क्यों याद आने लगी?
कुछ नहीं, बस एक तस्वीर देख ली
२००३ की....
१८ साल हो गए उस बात को,
साला बूढ़े हो गए है यार हम अभी!
कभी किसी को बोले नहीं,
पर जिम्मेदारी के बोझ तले ना, सांसे घुटने लगी है!
१८ साल पहले बस बस्ते का बोझ था,
और आज पता नहीं किस अंधुक से ब्रम्हांड को खुद की पीठ पर ढोए घूम रहा हूं,
साला बूढ़े हो गए है यार हम अभी,
कभी एक वक्त था,जब लोगों की भीड़ में अच्छा लगता था,
पर आज माहौल नहीं बन पाता भीड़ में,
आज तन्हाई दिल को लुभाती है,
और साथ में पिया की यादें हो तो होंठो पर मुस्कान भी आही जाती है,
कभी अपने भुलक्कड़ से मन को टटोले देखता हूं,
तो अपने पुरानी यादों की रद्दी नजर आती है,
और कुछ अनुभवों की certificate भी,
जो मुझे आज तक काम नहीं आया...!
पर एक बात तो है,
आदमी कितना भी बूढ़ा हो जाए,
उसके अनुभव कभी बूढ़े नहीं होते,
मुझे कैसे पता?
बस अनुभव है....!

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19 JUL 2021 AT 18:36

#Can I be a non striker?

What's this?
A lovely perspective which makes us able to see and deal with the reality that there are gonna be certain things that you cannot or may not be able to do.
It's entirely great way to realise that there are holes in your armour and certain things will never work no matter what you do.
So, be concerned with things you can do, help them (other people to achieve) to be the better person, who knows in-process of that, you might become the better person yourself.
Giving your space to others to thrive gives you closures from doubts that arrives in mind being "you couldn't do it
"
It's just that it should never be the gateway to rip off good grace from people.
If you do so, Selfless good deeds turns into menure. So just take a back seat once in a while. You'd feel good. Who knows, you might become able to fix that hole your own armour.

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19 JUL 2021 AT 18:17

क्या तुम टूट गए हो?
तो बिखर भी जाओ थोड़ा,
जो डर से गए हो, इस मुकाम पर आकर,
तो सहम कर खुद से लिपट जाओ जरा,
जो दिल करे फुट फुट के तो देने का,
तो ढूंढ लो कोई बहती नहर को छुपी हो दिल के किसी कोने में,
और बस बह चलो जरा!
देखो, यूहीं बेवजह खुद से रूठ जाना,
खुद ही के वजूद से रिश्ता तोड़ देना,वाजिब है और
लाजिमी भी,
शायद, क्या पता! यूंही टूट जाने के बाद
थोड़ी सी सुध आ जाए, और खुद का ख्याल रख लो,
क्या पता, खुद से दूर होने के बाद कुछ ऐसा हो के
किसी सुनसान वादियों में, या तपते खौलते रेगिस्तान में खुद से फिर नए सिरे से मिलना हो!
बंजारा बनकर जिन में को हरज नहीं मेरे मालिक!
हर्ज तो तब है, जब तुम मर चुके हो अंदर से,
और खुद के रूह की मय्यत अपने कांधे पर ढोते जाओ!
बिखर के संभलने में कोई हर्ज नहीं!
कोई हर्ज नहीं!

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2 MAY 2021 AT 21:12

Learned one thing today.

Even your family will start talking shit about your goals, aspirations and Dreams when you take steps towards breaking the curses of poverty and never ending chaos of dilemma that your forefathers and pioneers of your own race bestowed upon you and them.

Trust me....!

Determination and strong heart is not a cup of tea for weak and comfort seeking worm.

You have to pay if you gonna play.

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25 NOV 2020 AT 21:31

* 10 Songs by Lucky Ali to listen when life takes driving seat and leads you in oblivion of uncertainty*

1) Jaane kya dhundhta hai yeh mera dil - sur- 2002
2)Na tum jaano na hum- kaho na pyaar hai- 2001-2
3) O sanam - sunoh- 1996
4)Dekha hai aise bhi - sifar- 1997
5)Nahi rakhta dil mei kuch- sifar- 1997
6)Tere mere sath jo hota hai- comodia-
7)Hairat - Anjana Anjani- 2010
8) Bekarar - Pathshala- 2009
9)Safarnama- Tamasha-2015
10) Aa bhi jaa- sur- 2002.

Enjoy.

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22 NOV 2020 AT 20:43

के तेरे गुजर जाने के बाद,
फिर कभी हमने आइने में खुद को निहारा नहीं,
के अब तनहाई भी पूछती है,
"क्यों बरखुद्दार? खुद के चेहरे से नफ़रत हो गई है, या बस उन्होंने लबों पर छोड़े बोसे के निशान खुद की बिखरी शकशियत से रूबरू करवाते है?"
और हमसे कुछ और होता नहीं,
बैठे रहते है, कलम और कागज थामे,
इसी सोच में, के काश की तुम
आ जाओ, उसी रास्ते से जिस रास्ते से
रुखसत ए जुदाई हुई थी!

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21 NOV 2020 AT 21:32

यूंही तो बैठा हूं उसी मेज पर,
के कहीं से वहीं पुराने खयाल,
जहन को कुरेद से रहे है,
शायद उसी खुली खिड़की
की जानिब से आ रहे होंगे,
पर अब दिल नहीं करता,
के उठ जाऊ और बन्द करदू,
वैसे भी हररोज तो ढूंढते ही
रहते है,
खुद को राख करने के तरीके!
आज जो मौका मिला है,
अनायास!
तो जाने देते है,
कुछ प्याले तकल्लुफ के,
वैसे भी, खुद का खिलौना बने,
अर्सा बित गया है!
कागज भी भीग चुका है,
और कलम तो जनाब कबकी तोड़ दी है,
क्या करे? दिल्लगी भी अलग ही जहर है,
जबतक उनसे राबता न हो,
रात गुजरती नहीं!
अब ना हम पागल हो गए है,
सो बस, थम रहे है
बिना वजाहत दिए!

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