Ramandeep Sehgal   (Raman)
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Joined 18 May 2017


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Joined 18 May 2017
23 SEP 2023 AT 23:00

जाल नफ़रतों का फैलाया जा रहा है
शोर हर तरफ़ यह मचाया जा रहा है

है ख़तरे में यह धर्म-वह धर्म, कह कर
तमाशा इंसानियत का बनाया जा रहा है

यहाँ लाइट वहाँ फव्वारे, दिखावा ही है
सदाक़त को तो सबसे छुपाया जा रहा है

महंगाई की मार या भाईचारे की हार
जश्न किस बात का मनाया जा रहा है

धर्म, देश, देशवासियों को नहीं, बस
अपने अपने पदों को बचाया जा रहा है

अपनी क़ाबलियत से अनजान है वह
जिन्हें कठपुतलियों सा नचाया जा रहा है

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1 MAR 2023 AT 1:50

ख़्याल ज़ेहन में अब कोई आता नहीं
इसलिए मैं पन्नों को अब सजाता नहीं

नहीं नहीं मरे नहीं है जज़्बात मेरे
बस अब उन्हें सरेआम दिखाता नहीं

ग़ौर से देखा जब, सब अपने ही थे
ख़ैर धोखा कोई ग़ैरों से तो खाता नहीं

हुआ हश्र ख़्वाबों का कुछ ऐसा कि
अब कोई नए ख़्वाब मैं सजाता नहीं

संग थी तू तो हर चीज़ में थी ख़ुशी
अब दिल को कुछ भी लुभाता नहीं

हाँ हूँ मैं अलग दुनियाँ के लोगों से
सौदा ज़मीर का जो कर पाता नहीं

लगती है बातें मेरी कड़वी कुछ को
सच बोलने से जो मैं कतराता नहीं

सिर्फ़ कहा नहीं अपना, समझा भी
दिखावे का प्यार मैं जताता नहीं

हो जाते है काम सारे, मेहर है उसकी
वरना मुझ नकारा को कुछ आता नहीं

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22 DEC 2022 AT 18:10

दुनिया से हर सच छुपाया है
जो चाहा, बस वही बताया है

नाचती है मीडिया इशारों पर
जो कहा, उन्होंने दिखाया है

धर्म कभी फ़िल्म में उलझा कर
असल मुद्दों से ध्यान भटकाया है

परवा है जनता की, देश की
कह कह कर ये, वोट पाया है

होंगे न कभी हिंदू-मुस्लिम एक
जाल नफ़रत का जो फैलाया है

मर रहे है लोग नशों से, तो मरे
मैंने तो इससे पैसा कमाया है

अब क्या बताऊँ, क्या कुछ नहीं किया
ख़ातिर कुर्सी, ज़मीर तक बेच खाया है

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6 NOV 2022 AT 18:28

Tu tera tera sikhaya si,
Main mera mera kar’da reha

Tu satnam da paath padhaya si,
Main jaal jhooth da bun’da reha

Tu hi’yo karta purkh ae dateya,
Main ainvayi khud te akar’da reha

Tu nirbhau mainu banaya si,
Te main duniyadari to dar’da reha

Tu nirvair da jhaap karaya si,
Main dharma ch vair kar’da reha

Maaf kari baba nanaka mainu,
Metho banda na tera ban’ya gaya.

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4 DEC 2019 AT 12:23

देख कर ख़ुशियाँ मेरी ज़माना जलने लगा है,
मुझ जैसा बनने की कोशिश अब करने लगा है,

सुन कर के इंसान की हैवानियत की दास्तान,
शैतान तक ग़ुस्से की आग में जलने लगा है,

एक तुझसे ही उम्मीद थी मुझे लेकिन, सुना है
तू भी अब ज़माने के रंगों में रंगने लगा है,

जब से देखा है ये चट्टान सा हौंसला मेरा,
ख़ौफ़ मेरा दुश्मनों में तब से बढ़ने लगा है,

दूर कहीं संग उसके हो इक छोटा सा आशियाँ,
ख़्वाब ये कैसा इन आँखों में पलने लगा है,

नींद चैन भूख सब कुछ खो बैठी है वो अपना,
सुना है इश्क़ मेरे का ख़ुमार चढ़ने लगा है,

हर बार दिया है धोखा हाथों की लकीरों ने,
दिल मेरा क़िस्मत से अपनी अब डरने लगा है।

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1 NOV 2018 AT 1:20

मुझे मुझसे ज़्यादा सिर्फ़ एक शख़्स जानता है,
वो जो आईने में है, मेरी रग रग पहचानता है।

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11 AUG 2021 AT 11:42

भगत सिंह आपको फिर आना होगा,
बदलाव समाज में लाना होगा,
भ्रूण हत्या को बंद करवाना होगा,
फ़र्क़ नहीं लड़का-लड़की में कोई
इस समाज को ये समझाना होगा,
भगत सिंह आपको लौट के आना होगा।

भगत सिंह आपको फिर आना होगा,
इस देश से बुराई को मिटाना होगा,
सदाक़त की राह चलना सिखाना होगा,
भारत माँ की शान को बचाना होगा,
इसे अपने सपनों का देश बनाना होगा,
भगत सिंह आपको लौट के आना होगा।

-रमनदीप सिंह सहगल

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24 MAY 2021 AT 0:08

धर्म, जात-पात से दूर अलग आशियाना बनाए
चल यार इंसानियत को फिर ज़िन्दा कर दिखाए

सोचता होगा खुदा भी, आख़िर हुआ क्या ऐसा
क्यों इंसान को इंसान में इंसान नज़र न आए?

बना हर इंसान मिट्टी का, रंग लहू का भी है एक
फिर क्यों एक दूसरे के प्रति मन में ईर्ष्या लाए?

सिर्फ़ अपने लिए ही जीते आए है आज तलक
वक़्त है अब कि साथ दूसरों का निभाए

ये हालात जो बिगड़े है, ठीक भी हो सकते है
बस शर्त है कि अब अपने ज़मीर को जगाए

ये दुनिया एक रंग मंच है और हम कठपुतली
बेहतर है डोर अपनी हम रब को ही थमाए

धर्म, जात-पात से दूर अलग आशियाना बनाए
चल यार इंसानियत को फिर ज़िन्दा कर दिखाए

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5 MAY 2021 AT 18:11

बर्बादी का मंज़र है, तबाही से बचा लो
गुज़ारिश है, अपना ज़मीर अब जगा लो।

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9 DEC 2020 AT 17:44

मिट्टी से मिट्टी हो कर
धूप में ख़ुद को जला कर
ख़ून पसीना बहा कर
बंजर ज़मीन में भी अनाज वो उगाता है
किसान अनदेवता यूँही नहीं कहलाता है

तमाम मुसीबते सर पे उठा कर
हर घड़ी हर पल मुस्कुरा कर
जिम्मेवारिया अपनी वो निभाता है
भरता है पेट सबका
ख़ुद भूखा सो जाता है
किसान अनदेवता यूँही नहीं कहलाता है

हो धूप या बरसात या हो काली अंधेरी रात
न आलस न कोई डर उस को रोक पाता है
जज़्बा देख उस का
हर मौसम से वो टकराता है
घर से ज़्यादा वक़्त तो खेतों में अपने बिताता है
प्यार धैर्य व मेहनत से अपना कर्म करता जाता है
किसान अनदेवता यूँही नहीं कहलाता है

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