15 MAY 2017 AT 9:19

तेरे बिन एक भी लम्हा हँस कर जिया नहीं
कोई घूंट मसर्रत का तेरे गम में पिया नहीं

तू ये सोचकर पढता है मेरे अल्फ़ाज़ों को
के कहीं उनमे मैंने तेरा ज़िक्र तो किया नहीं

सुबूत इस से ज्यादा क्या होगा मोहब्बत का
आज तक मैंने किसी बज़्म में तेरा नाम लिया नही

रूसवा करने पे आ जाऊँ तो तू कहीं का न रहे
पर ये रुसवाई का हक़ भी मैंने तुझे दिया नहीं
#राखी

- #राखी