मैं लिखती ही इसीलिए हूँ कि भूल जाऊं
कौन अपने ज़ख़्मो को याद रखना चाहता है
कलाम से उकेरती हूँ चन्द अलफ़ाज़ कागज़ पर
कौन अपनी बर्बादियों का जश्न मनाना चाहता है
ग़ज़ल बन जाती है ख़ुद ब ख़ुद मरहम मेरा
नही तो ये ज़माना तो हर बार दर्द जाताना चाहता है
रूह के अहसासों को ज़ाहिर करती है ग़ज़ल
वरना कौन जिंदगी के दरिया में पतवार चलाना चाहता है।
#राखी
- #राखी