20 MAR 2017 AT 21:17

कमाल का इश्क़ था पर रास न आयी बेड़ियाँ हमे
तेरे इश्क़ की लकीरों को लांघ कर हम फरार हो गए

जाने क्या तलब थी या उल्फत का नशा था साहिब
सरहदें तोड़ कर जमाने की इश्क़ में गिरफ्तार हो गए

सुरमई आँखों का काजल आंसुओं ने कुछ यूँ चुराया
हम तेरे मरीज़ ए इश्क़ तेरी बेवफाई के बीमार हो गए

लबों से ख़ामोशी का लिबास तब उतार फैका हमने
पर ज़ालिम ज़ुबाँ के लकवे के हम शिकार हो गए

उतार फेंकी जिस्म पे जो थी हमारे शर्मोहया की रिदा
मज़मून कर तेरे खतों को हम दुनिया मे शर्मशार हो गए

कुछ तो तुमने भी दरियादिली दिखाई होती ऐ साकी
क्यों हम ही सबकी नज़रों में इस क़द्र गुनाहगार हो गए

टूटे अरमान इश्क़ ऐ घरौंदे के कांच की मानिंद ज़र्रा ज़र्रा
तुझसे जितने दूर हुए उतने ही ज्यादा तेरे तलबगार हो गए ।
#राखी

- #राखी