कैसा शख़्स है फिर से ख़त ए इब्तिदा करना चाहता है
उजली रूह से अपनी ज़ीस्त को सुर्ख़ रंगना चाहता है
ओ साक़ी ये ख़त नही तेरे नाम बस तहरीर है
ये जिस्म ये रूह बस तुझमें फ़ना होना चाहता है ।
वो तू ही है जिसके लिए मेरा दिल अहतराम से
उस ख़ुदा के सजदों में झुकना चाहता है।
तसल्ली बस ये कि रूह की रिहाई मुमकिन हो
दिल बस तेरे लिए फरियाद करना चाहता है ।
जिस्म में कैद रूह उड़ जाएगी एक दिन जाने कहाँ
बेजां होने से पहले ये बस तेरा होना चाहता है ।
लाखों निगाहें तलाश रही है करीब आने का सबब
अहसासों का दरिया तेरा ही सफीना चाहता है ।
कहीं दूर से आती है सदायें तेरे बेचैन होने की जब
कम्बख्त ये दिल तुझसे नैन मिलाना चाहता है ।
उड़ता है मेरा आँचल हवा में मदमस्त होकर साहिब
ये भी तुम्हें मेरी ही तरह पास बुलाना चाहता है ।
#राखी
- #राखी