Raj Shekhar Kumar  
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Joined 20 November 2016


Joined 20 November 2016
25 SEP 2020 AT 23:42

ख़ामियाँ निकालने वाले भी मेरी खूंबियाँ गिना रहें हैं
क्या मैं मरने वाला हूँ,क्यों मेरी नेकियाँ गिना रहें हैं

दिन कितने बचे हैं छोड़ के,सुबह-ओ-शाम कि दवाइयाँ
चारागर,आप भी ये क्या-क्या मियाँ गिना रहें हैं

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26 MAR 2020 AT 14:30

वो बैठे हैं सावन के इंतज़ार में
हम आग लगा रहें हैं गुलज़ार में

आँखें अजब ये मंजर चाहती हैं
पत्ते झड़े अबके बहार में

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10 JAN 2020 AT 0:34

इंतज़ार करते करते सो जाएगा घर,ख़ुश रहो
तुम करते रहो अपने मन का सफ़र,पर,ख़ुश रहो

गाँव छोड़ो,शहर जाओ,नौकरी करो,पैसा कमाओ
तेरे बदन से ख़ून चुसे भी जो दफ़्तर,ख़ुश रहो

सियासी गलियारों में नफ़रत लिए हम हैं खड़े
मेरे सामने तेरा,अगर सलामत हैं सर,ख़ुश रहो

ज़िन्दगी यूँ हीं रोज दो-चार घूँट पिलाएगी
पर होगा न कुछ,इस जहर का असर,ख़ुश रहो

ये बात मन ही मन,आज भी खटकती हैं
क्यों सबने झूठ कहा था पैर छूने पर,ख़ुश रहो

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5 JAN 2020 AT 20:51

जो छूट चुकी है,उस आदत कि ज़रूरत है
मुझे फ़िर ख़ुद से हीं,नफ़रत कि ज़रूरत है

ग़म का ख़जाना कभी कम न हो ख़ुदा,मुझे
जीने के लिए,इसी दौलत कि ज़रूरत है

सर्द रात में,किसी कि याद में,ठिठुर रहा हूँ
तन्हाई मुझसे लिपट,हरारत कि ज़रूरत है

जो माँगता हूँ मैं,वो मुझे देने के लिए
बता ख़ुदा क्या,तुझे रिश्वत कि ज़रूरत है

बात बात पे मरने कि बातें कर देता हूँ,पर
ख़ुदकुशी के लिए,हिम्मत कि ज़रूरत है

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9 DEC 2019 AT 21:05

जो है हीं नहीं,उस गम का मातम मना रहें हैं
जी जी के मर रहें हैं,मर मर के जिए जा रहें हैं

ग़ज़ले और कुछ नहीं,मेरी अपनी दास्तान हैं
रो रो के लिख रहें हैं,हँस हँस के सुना रहें हैं

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5 OCT 2019 AT 0:00

आज किस ग़म का,मातम मनाने बैठ गए हम
आँखों में आँसू सजाने,तेरे बहाने बैठ गए हम

ये किस कहानी में ख़ुदा ने हमें भेज दिया,बारहा
तेरी ख़ुशी के लिए,खुद को सताने बैठ गए हम

तेरे दिल कि सदा जब,उसके दिल तक नहीं पहुँची
ऐसे में,इससे सुनके,उसको सुनाने बैठ गए हम

तुझे समझाया-बुझाया,तेरे संग हँसा अक़्सर
और तेरा फ़ोन कटते,ख़ुद को रुलाने बैठ गए हम

अपनी क़िस्मत कि लकीरें मिटाने,इसी बहाने
उठाया कलम,आग से आग बुझाने बैठ गए हम

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30 MAR 2019 AT 12:37

ऐसी भी यहाँ सौगात भेजे कोई
न कटने वाली रात भेजे कोई

अगर मुमकिन हो तो ज़हर भी
अपनी यादों के साथ भेजे कोई

बिजली चमक के रह जाती है
रूह प्यासी है,बरसात भेजे कोई

परेशान रूह से यही सदा आती है
हयात न सही,वफ़ात भेजे कोई

जब भी मैं लिखने बैठूँ,ग़मगीन हूँ
ऐसे झूठे ख्यालात भेजे कोई

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7 MAR 2019 AT 22:34

ये जान के क्या करोगी,कि तुम पहली,दूसरी या तीसरी हो
तुम्हारे जानने कि बात ये है कि,मोहब्बत तुम मेरी आख़री हो

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1 MAR 2019 AT 20:00

दिल तू क्यों उदास है,इसमें तो जरा भी अज़ब न था
आदतन वो कह गए,उनके कहने का ये मतलब न था

आख़िर चेहरे पर आँसुओं के फ़िर नक्श-ए-पा देख के
तन्हाई भी आज ये कह गई,तू तन्हा भला कब न था

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9 FEB 2019 AT 15:02

काम है ज्यादा और मेहनताना कम है
किसे बताएँ,कितने मुश्किल में हम है

इस प्राइवेट नौकरी का हाल न पूछो
यहाँ पैसा ही ख़ुशी है और यही गम है

कबसे ख़ून चूसा जा रहा है मजदूरों का
इनके लिए सरकार बस बनाती नियम है

मेरे जेब का वज़न डराता है मुझे,क्योंकि
घर जाना है,त्यौहारों का मौसम है

इस तन्हा शहर में तन्हाई से बचा देती है
इस मुफ़लिस के पास जो कलम है

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