इंतज़ार करते करते सो जाएगा घर,ख़ुश रहो
तुम करते रहो अपने मन का सफ़र,पर,ख़ुश रहो
गाँव छोड़ो,शहर जाओ,नौकरी करो,पैसा कमाओ
तेरे बदन से ख़ून चुसे भी जो दफ़्तर,ख़ुश रहो
सियासी गलियारों में नफ़रत लिए हम हैं खड़े
मेरे सामने तेरा,अगर सलामत हैं सर,ख़ुश रहो
ज़िन्दगी यूँ हीं रोज दो-चार घूँट पिलाएगी
पर होगा न कुछ,इस जहर का असर,ख़ुश रहो
ये बात मन ही मन,आज भी खटकती हैं
क्यों सबने झूठ कहा था पैर छूने पर,ख़ुश रहो
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