पता है यार, कभी-कभी न हमारा बहुत मन करता है बात करने का। किसी पुराने, किसी अच्छे दोस्त से। पर न, ये काम बहुत मुश्किल हो जाता है। खासकर जब हम आमतौर पर बातूनी न हो तब। यूँ ही अचानक से किसी दोस्त को परेशान करना, कि यार मेरा बात करने को दिल कर रहा है, पर बात करने को कुछ है भी नहीं! ऐसे में क्या करना चाहिए? मुझे आज तक नहीं समझ आया!
अचानक से किसी को ढेर सारे, बिन मतलब के मेसेज कर दो, तो भी डर कि क्या सोचेगा सामने वाला व्यक्ति? कहीं बिजी न हो पढाई में? इंसेंसिबल न समझ ले? और सबसे बड़ा डर, इग्नोर न कर दे! मुझे तो लगता बहुत लकी होते वो लोग जिनके पास ऐसी सिचुएशन में बात करने को होता कोई, जो थोड़ा सेंसिटिव तरीके से ये सब समझ ले।
वो क्या है न, कभी-कभी हमारा मन हमारे दिमाग से बहुत तेज़ चलता है। और ये वही टाईम होता जब हम बिना सोचे समझे बात करने की कोशिश करते भी हैं... पर समझदार दोस्त हमें ये एहसास दिला देते की हम इंसेंसिबल ही बिहेव कर रहे (या शायद वो इंसेंसिटिव)!!
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