Preeti Singh  
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Joined 19 January 2017


Joined 19 January 2017
13 MAY 2021 AT 23:35

A friend who really understands you..

Doesn't Exist.

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11 MAY 2021 AT 2:51

Memories....
You forget the ones,
Which you want to cherish forever...

Memories...
Between good and bad,
Why bad one lasts longer ??

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27 APR 2021 AT 2:13

फ़रेबी हैं सब आस पास,
रुबरू कराता है ये दर्द...
मुखौटे बेनक़ाब करते करते ।

हँसी में हस्ते हैं सब साथ..
दर्द में रह जाते हैं क्यों अकेले आप ?

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24 APR 2021 AT 18:53

अब पहले जैसा इंतज़ार नहीं रहता ।
वो गर्मी की छुट्टियाँ..
वो अपनों का घर..
अब दादी का वो प्यार नहीं मिलता ।
यादों की लड़ियाँ हैं बस,
सोच कर यूँही,
कभी आँखें नम कभी दिल को खुश,
कर लिया करते हैं।
गर्मी की छुट्टियों का..
अब पहले जैसा इंतज़ार नहीं रहता ।

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8 MAR 2021 AT 2:22

सोचती हूँ.....

ऊपर ऊपर से खिला हुआ ,
हर चेहरा....
अंदर से मुरझाया हुआ क्यों है?

कहते हैं दिन में उजाला होता है ,
फिर भी....
सब कुछ साफ़ साफ़
समझ अँधेरी रात में ही क्यों आता है?

जो अपना कहते हैं,
बीच राह में ही छूट जाया करते हैं।
क्यों अजनबियों के साथ,
जिंदगी आगे बढ़ जाती है?

क्यों गम में कोई अकेला,
और खुशियों में भीड़ से घिर जाता है?

क्यों कुछ अच्छा आसान नहीं होता?

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14 JAN 2021 AT 18:31

मेरी तो नहीं है...

एक बिन पते की चिट्ठी सी हूँ
जिसे लेकर डाकिया,
घूमता है घर- घर
बस इस विश्वास में,
कि किसी की तो होगी...
जिसे पढ़कर, हर कोई कह देता है
मेरी तो नहीं है...

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30 AUG 2020 AT 19:50

जब एक उजला सवेरा ,
कई रातों का अँधेरा सा लगने लगे।
एक ओर उलझनों में मन हो,
दूसरी ओर बिछड़ने का गम हो।
तकलीफ़ों की इस बारिश में,
वो छतरी सा प्यार.....
उड़ कर तुमसे दूर जाने लगे।
तो क्या करें?
जब कई अर्से गुजर जाएँ,
जीना सीखने में,और पता चले,
जिंदगी जीना नहीं मारना सिखा रही हो।
धीरे धीरे...।।

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16 JUL 2020 AT 2:22

मेरी जिंदगी का सबसे अटूट हिस्सा तुम
बस, मेरा पहला प्यार नहीं हो।


मेरे प्यार की गहराई तुम
बस, उस प्यार का जादुई इक़रार नहीं हो।


मेरी बेकरारी का क़रार तुम
बस,उस कच्ची उमर् का एहसास नहीं हो।


मेरे उस लंबे इंतज़ार का अंत तुम
बस, शुरुआत  नहीं हो।


बस तुम मेरा पहला प्यार नहीं ......

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6 JUL 2020 AT 0:52

एक कठपूतली चिड़िया सी,
ना पूरी आज़ाद ना पूरी क़ैद हूँ।


निर्भर हूँ कठपुतली वाले पर,
कभी सजीव तो कभी निर्जीव हूँ।



क्या हूँ?


कुछ नहीं हूँ मैं, या फिर,
मैं ही "कुछ नहीं हूँ" !


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16 JUN 2020 AT 19:52

इस दुनिया में रहता तो था,
पर इस दुनिया का कहाँ था वो?


समझा कहाँ लोगों ने उसे,
कह तो बहौत कुछ जाता था वो...


रास नहीं आई उसको इस दुनिया की चक्रव्युह रचना,
तारों भरी रात में, इसलिए तो देखा करता था,
आसमानी सितारों की , वो अपनी दुनिया..


समय यात्री है वो...


ठैरा था बस कुछ दिन वो तुम्हारे घर,
रुकता भी तो कैसे?
अभी तो उसे जाना है कईयों के घर....!!

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