इस दुनिया में रहता तो था,
पर इस दुनिया का कहाँ था वो?
समझा कहाँ लोगों ने उसे,
कह तो बहौत कुछ जाता था वो...
रास नहीं आई उसको इस दुनिया की चक्रव्युह रचना,
तारों भरी रात में, इसलिए तो देखा करता था,
आसमानी सितारों की , वो अपनी दुनिया..
समय यात्री है वो...
ठैरा था बस कुछ दिन वो तुम्हारे घर,
रुकता भी तो कैसे?
अभी तो उसे जाना है कईयों के घर....!!
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