19 JAN 2017 AT 20:15

ज़िन्दगी , हाँ ज़िन्दगी , कभी सोचा आखिर ज़िन्दगी क्या है |
ये ज़िन्दगी कैसी है क्यों हैं , किस्से है , किनके लिए है |
क्या ये युहीं घड़ी के लम्हो से जुड़ा इक पहर है , या फिर नसीब के वो पल जो हम अनेक लम्हो में बिता देते हैं !

क्या ये माँ की गोद में खेलता नन्हा बचपन है |
या फिर उस मेहबूब की आँखों में छुपा गहरा प्यार ||
या फिर बूढ़ापे में छूटती हुई दुनिया का एहसास है |
आखिर कार क्या है ये ज़िन्दगी ||

लेकिन कभी रूह की नज़रों से देखो तो पता चलेगा ये ज़िन्दगी क्या है |

ये ज़िन्दगी पर्वतों के पीछे से उगते हुए सूरज की रौशनी है |
ये ज़िन्दगी अमावस के अँधेरे को मिटाते हुए चाँद की शीतलता है ||
ये ज़िन्दगी पेड़ो की टहनी पे सुरीली कोयल का मधुर संगीत सा है |
ये ज़िन्दगी समुद्र के किनारे पर शांत होती लहरो सी चंचलता है |
ये ज़िन्दगी ऊँचे शिखरों पैर जमी सफ़ेद बर्फ की विशुद्धता है
आखिर कार बहुत खूब सूरत है ज़िन्दगी ||

पर क्या कभी इस ज़िन्दगी को महसूस किया है |
क्या कभी उस नन्ही माँ के आँचल में खिलखिलाती ज़िन्दगी को महसूस किया है ||
क्या कभी बारिश के मौसम में सड़को पर पानी में छपकते हुई उस नन्ही ज़िन्दगी को महसूस किया है |
क्या कभी उस उस माँ के हाथ के खाने में छुपे उस मुह के स्वाद जैसी ज़िन्दगी को महसूस किया है |
क्या कभी बाबा की धुप और बारिश में दौड़ती हुई उस ज़िन्दगी का एहसास किया है||
क्या कभी किसी प्यार करने वाली की अश्को में छुपी उस ज़िन्दगी पे ऐतबार किया है |
क्या कभी उस ढलती हुई उम्र में एक दूजे का हाथ थाम कर चलती हुई ज़िन्दगी का एहसास किया है ||

पर ये ज़िन्दगी थम क्यों जाती है |

- Prateek Kataria