19 JAN 2017 AT 20:17

ठहर जाना तो इस प्रकृति का नियम है |
बिलकुल उसी तरह जैसे एक रास्ता मंज़िल पर जाकर ठहर जाता है ||
बिलकुल उसी तरह जैसे एक नाव अपने साहिल को मिलते ही रुक जाती है |
बिलकुल उस तरह जैसे अग्नि से मिलकर लकड़ी राख होजाती है ||
बिलकुल उस तरह जैसे आँखों से गिरे आंसू चेहरे के रस्ते से मिट जाते हैं |
और बिलकुल उस तरह जैसे आत्मा परमात्मा से मिल कर ठहर जाती है .|

हाँ यही ज़िन्दगी है |

कभी गर्मी की कड़कती सुबह तो कभी सर्दी की ठंडी छाँव |
कभी काले बादलों को हटाता हुआ चमकता सूरज तो ||
तो कभी उन्ही बादलों के पीछे छिपता हुआ चन्द्रमा |
कभी किसी हस्ते चेहरे के पीछे छुपे हुए आंसू ||
तो कभी नन्हे बचपन में किसी ज़िद पर आँखों से बहते वो प्यारे आंसू |
कभी किसी की आँखों में छुपी वो प्रीत पुरानी ||
तो कभी किसी टूटे हुए दिल की कविता

बस यही है ज़िन्दगी नन्ही सी कहानी

” इस ज़िन्दगी से क्या शिकवा करना
क्या पता कल कहाँ हो , क्या रहे या न रहे
तो इन्ही लम्हो को हस्ते खिलखिलाते जीते जाओ
क्या पता अगले पल की उम्र कितनी लंबी हो “

- Prateek Kataria