27 MAY 2017 AT 17:04

ये धूल मेरा श्रृंगार कर रही है
मेरी मेहनत मेरे माथे पे लिख रही है
अब हारने जीतने की फिक्र किसे है
अंत धूल ही धूल मे मिल रही है


- Dr.प्रसून तिवारी "गर्दिश