अनजान से कुछ ठिकाने
दूर से बुला रहे थे जैसे
मन में जगी तमन्ना नई थी..
कुछ होसलें, कुछ ख़्वाब लिए
घर छोड़ चला परिंदा..
जिस सुकून की तलाश में सफ़र शुरू किया था
वही पाने आज वो घर लौटा है,
अपनी सी हुआ करती थी जो हवाएं कभी जो...
आज पहचानने से इंकार करती है।
- P. S. Aislinn