इक वक़्त का दरिया है जो बहता जाता है
तेरा ग़म जहाँ ठहरा था मैं वहीं पे ठहरा हूँ

नींद आने की कोशिश में मैं जागता रहता हूँ
इक ख़्वाब से टूटा था मैं अब भी अधूरा हूँ

आँखें गर आईना हैं तो आईना झूठा है
खुश्की की कालिख को मैं रात में धोता हूँ

इक आग जो दिल की थी वो आग अब दिल में है
खूँ धुआँ सा बहता है मैं जलता कोहरा हूँ

तुम ढूंढोगे मुझको और मिल ना पाओगे
मैं चाँद के पीछे की बस्ती का अंधेरा हूँ

- Piyush Mishra