पीयूष मिश्रा   (Piyush Mishra)
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यायावर The Wandering Poet
Joined 9 October 2016


यायावर The Wandering Poet
Joined 9 October 2016

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पहले मुझको ख़ुदा किया
फिर बुत मुझको बना दिया

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सब रस्ते घर को जाते हैं
तो कैसे घर खो जाते हैं

दिन को चमकें सूरज से हम
शाम को दरिया हो जाते हैं

थक गए सपने पूरे करते
अब हम थोड़ा सो जाते हैं

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जागती आँखों से देखता हूँ सपने
ना जाने कब से मैं सोया नहीं हूँ

हँसता हूँ क्योंकि मैं सब सहता हूँ
अपनी बातें ख़ुद ही से कहता हूँ
उलझ कर मैं ख़ुद से ही रह गया हूँ
तड़पता हूँ कब से मैं सोया नहीं हूँ

राह नहीं है पर मैं चलता हूँ
बेमंज़िल ही रोज़ निकलता हूँ
कभी तो ख़त्म होगा सफ़र ये
भटका हूँ अक्सर मैं खोया नहीं हूँ

लम्बी है रात कि सूरज नहीं आता
ठहरा हूँ मैं कि ये पल ही नहीं जाता
जागती आँखों से देखता हूँ सपने
ना जाने कब से मैं सोया नहीं हूँ

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एक घने जंगल में
सूरज की रोशनी भी जहाँ पहुँचती नहीं
अँधेरा ऐसा
कि तारे भी झाँक सकते नहीं
हवा को रास्ता नहीं सूझता
लगातार बोलते झींगुर थक कर गूँगे होने की दुआ माँगते हैं
वहाँ अनंत काल से टिमटिमाते रहना
तुम्हें कैसा लगता है उदासी?

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कल यानी 29 october को मिलिए मुझसे सारे दिन, YQ के insta stories में। एक writer और copywriter के रूप में मेरा एक दिन और बहुत सारा fun

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दाग़ अच्छे हैं
(read in caption)

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कहता हूँ एक बात
आज की रात
जानम! हो सके तो सोना मत
सुन सको गर बात मेरी
है छुपी जो बात में
जानम!हो सके तो रोना मत

ऐसी ही एक रात
कह रहा था जब मैं तुमसे ऐसी ही एक बात
एक बूँद टपक पड़ी थी
हथेली पर मेरे
जो आयी थी आँख से तुम्हारे
आज तक माफ़ नहीं कर पाया हूँ मैं
उस पल, उस बूँद के लिए,
अपने आप को

सच कहूँ?
कह नहीं पाया हूँ अब तक
जो सोचता हूँ मैं
और जो कह गया अभी
सोचा नहीं था कभी

और जब कहने चला तो
आज फिर से सो गया तू
ख़्वाब में फिर खो गया तू
रह गया मैं
अधूरी बात
पूरी रात!!

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'Bahar' mein nahin hai!





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