कर्तव्य पथ दिखता रहा जिन्हें, वो चलते रहे। टूटी खड़ाऊ में, दृढ़ कदमों से। छिले घुटनों में, स्थिर चाल से। तपते सूरज में, सौम्य भाव से।
था मर्यादा का भान जिन्हें, अभिमान छू न सका उन्हें। निर्विकल्प, हर अभाव में, स्वभाव के विरुद्ध किए सुव्यवहार से । अनुचित मिले हर शाप में, अपने सुविचार से । अधर्म के अंधकार में, कर्म के प्रकाश से ।