Payal Dholakia   (Payal Dholakia)
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सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी वक्त के इम्तिहाँ और भी हैं।।❤
Joined 20 April 2017


सितारों के आगे जहाँ और भी हैं
अभी वक्त के इम्तिहाँ और भी हैं।।❤
Joined 20 April 2017
18 FEB 2022 AT 11:37

અચ્છાકુંવર કાંતિમયનું
મણી દૈવી રૂપમાં સમાઈને
મોક્ષ પામે એજ અભ્યર્થના
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16 FEB 2022 AT 13:56

હરિ કંચનનું મોહ જગ છોડી નિસર્યું
બટુક ધન દિનેશ્વરી ને આલિંગવા
મહા સુદ પૂનમ દિવસે "મોજ" બન્યું એકલવાયું
સુની થયી પોળ, સુનાં થયાં આંગણાં
હવે કેમ કરી સહિયે વસંતનો ખાલીપો!💔
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31 MAY 2020 AT 22:11

मासिक धर्म से शर्म या आपत्ति क्यों?
यदि स्त्रियां मासिक धर्म निभाती है
और उसे पूरी स्वतंत्रता से अपनाती है
तो पुरुष को भी स्त्राव होता है
उनका भी तो वीर्य स्खलन होता ही है
उन्हें कोई क्यों रोकता नहीं?
कोई क्यों टोकता नहीं?
ताकि वे मर्द है ?
अगर मर्दानगी दिखानी है तो सबसे पहले
मासिक धर्म को मानसिक विपत्ति ना बनाए
अगर देवी की पूजा करते हो
तो वे देवियां भी यही दौर से गुजरती है
हम सब उनका वरदान है
इसी लिए मासिक को धर्म कहा जाता है
वीर्य स्खलन से नहीं शरमाते तो इनसे क्यों?

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20 MAY 2017 AT 19:12

કહી દીધું છે મન ને ,
માની જવાનું
જીદ મૂકી ખોટી ,
કયારેક હારી જવાનું ...

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5 JAN 2022 AT 23:09

એજ જીવન
જે લખાયું છે હસ્તે
વિધાત્રીને ત્યાં

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16 AUG 2021 AT 0:23

એ અણસાર
લાગે તારા જેવો જ
મૃગજળમાં
- પાયલ

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28 JUL 2021 AT 0:10

આષાઢી મેઘે
વરસે મૃગજળ
સમાં સપના

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9 JUL 2021 AT 17:20

शामें ख़ाली दिलोंका बसेरा होता है
राग मधुवंती के आलाप सी
तन्हा, अकेली बीत जाती है
ना जाने कौनसे फ़िराक़ में,
किस राह में,
प्रतीक्षा की कलाई पकड़े पूरी शाम
कतरा कतरा सी बहती है
कोरी रैना ऐसे ही लौट जाती है
आधी सी, अधूरी सी।
अकेलेपन में कोई
हंगामा बरपा भी नहीं होता
विरह की शहतूत,
प्रेम रंग की और तरसी होती जाती है
दर्द अब दवा सा काम करने लगता है
एलिया और फ़राज़ की गजलें
शामको हमेशां मादक बना देती है
मानो कोई अपना
मृत्यु होनेके बाद भी
वो पास ही रहता है
ऐसा अहसास होने लगता है
शाम का हाल, उसका ऐब
अक्सर सोचने पर मजबूर करता है
और उसका जवाब ढूंढने में
रात बैरन हो जाती है।

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27 MAY 2021 AT 12:04

राहतें, चाहते, आहटें आज भी वही है,
रोनकें, बंदिशे, हसरतें आज भी वही है।

शोहरतें, मोहबतें आज भी वही है,
हालांकि, जो था, जो है, आज भी वही है।

मुनासिब सब हो नहीं सकता इस रंज-ओ-ग़म में
मुकम्मल जो हुआ है, वो आज भी वही है।

शायद यहीं पर है हमारे कर्मों की दास्तां
अजीब दिल तन्हा,आवारा, बेचारा
आज भी वही है।

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1 MAY 2021 AT 13:28

शाम, हवा और ये अप्रैल का महीना।
गम की शामें, बिछड़ने का दर्द ये सब जैसे अप्रैल महीने को लाइसेंस सा मिल चुका है। बैसाखी पूनम का चांद हमारे जीवन में इतना घना अंधेरा कर जायेगा ये सोचा न था। अप्रैल की पीड़ा इतनी मुनासिब हो गई है की हर बात पर अब रोना आता है। अप्रैल महीना जभी भी विदा होता है तो लगता है जैसे हम ख़ुद से जुदा होते जा रहे है। ऐसे अधूरेपन की राह में हमें क्यों छोड़ रहा है वो ख़ुदा। हमें अगर तू चाहे तो मुक्ति देना लेकिन तेरी खु़दाई के वास्ते हमारा यार मोड़ दे। हम पहले से ही यार की मौत का दंड भुगत रहे है। अब और क्या बचा है। रब्बा, अब तो खै़र कर। इतनी बर्बादी नहीं देखी जाती। दोस्त के बिना हम प्यासे है। उसकी दोस्ती के लिए तड़प रहे है, जैसे जल बिन मछली। जैसे भूखे तो रोटी ना मिलना और उसका भूख से बिलखना। सब कुछ छूट रहा है। छूटे का दर्द नहीं, जो गुम गया वो हमारा "घर" था। अपने दुःख को गले लगाकर हम कितनी बार रोए। हमें भी तो मजबूत कंधा चाहिए, जो तूने वो भी छीन लिया। इससे अच्छा है खु़दा, तू हमें बक्ष दे या फिर हमारा यार मोड़ दे।

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