निहारिका नीलम सिंह   (🖋निहारिका नीलम सिंह)
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Joined 12 April 2017


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Joined 12 April 2017

मेरे दर्द में तेरे सिवाय भला ऐसा कौन था
जो मुझमें था मेरे साथ था.. मुझमें मौन था

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कोई शिकायत इतनी बड़ी नही हो सकती
कि तुमसे फिर से बात करने से रोक सके
मैं फिर से बिछा देती सारे सपने , नींदे , यादें
बस तुम एक बार हमसे कहकर तो देखते

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चलो दुनिया की झूठी हदों से गुज़र जाएं
कि

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बिखरे शब्दों को कविताओं में
जैसे पिरो लेता है कोई कवि
किसी बिखरी हुई कविता की तरह
मुझे ख़ुद में समेट लेना तुम भी .....

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जिस तरह मुझसे होकर गुजरतीं हैं तुम्हारी यादें

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जब चाँद की रौशनी में सपने बुना करती थी




मोबाइल की स्क्रीन लाइट में यादें बुनती हूँ

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मैं छोटी-छोटी बात पर तनाव लेती हूँ
तनाव में मुझे शॉपिंग करना पसंद है ..

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दुनिया की साज़िशों को मैंने नाक़ाम कर दिया
मगर मेरे अपनों ने ही उनका काम कर दिया

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मातृ दिवस पर सभी के इनबॉक्स भरे हैं
स्टेटस भरे हैं माँ की तस्वीरों से
गर कुछ खाली है तो "माँ का मन "

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उस सुबह को सुबह नही कह सकते
जहाँ चिड़ियों के चहकने की आज़ादी न हो ..

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