उसने मेरी अनकही ख्वाहिश को यूं सुन लिया, जिस तरह बचपन में पापा बिन कहे समझ जाते थे कि कौन सा खिलोना पूरी भरी दुकान में मेरी नज़र को भा गया हैl जिंदगी के खेल मैं पाने _ खोने के दौड़ में बहुत कुछ खोया दोस्त, लेकिन जनाब नायाब बहुत कुछ पाया है।
आज को कल जीने के लिए वक़्त की कैद मैं है सभी, तोहफा (PRESENT) है आज जो उसे ना जी कर ना जाने किस दौड़ में हैं सभी, सोचता है दिल खामोश होकर क्या निकलेन्गे बlहर हम इस रंगीन धोखे से कभीl
मर चुका हूं जब मैं अपने हिससे का उसके अंदर, वो भी मेरे अंदर से अब चला क्यों नहीं जाता? बीतता है हर लम्हे मैं मेरे साथ खा म खा, वो अब खुद के सहर क्यों नहीं जाताl