Navaldeep Singh Arora   (The Lunatic Poet)
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Joined 8 March 2017


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Joined 8 March 2017
5 JUN 2018 AT 23:37

-Navaldeep Singh

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30 MAY 2018 AT 13:37

इस शहर पर राज अब अब्र ए खरीफ करता है
दर्द जितना पुराना हो उतनी तकलीफ़ करता है

ज़ुल्म कर कर गुनाह उतना बदमाश नहीं करते
वो ज़ुल्म सहकर गुनाह जितना शरीफ करता है

गलती तो थी मगर गलती उस के काफिये में थी
वो मगर फिर भी बदनाम अपनी रदीफ़ करता है

तुमसे पहले मैं कितना ना काबिल ए तारीफ था
देखो तुम्हारे बाद हर शख्स मेरी तारीफ़ करता है

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29 MAY 2018 AT 23:50

चलो अब ख्वाब देखना छोड़ देते हैं
उस खूबसूरत दुनिया के जिसे बनाने का
महज़ ख्वाब भर इतना भारी है कि हमारे
कंधे झुककर किसी पुराने व्रक्ष समान बन चुके है

वो व्रक्ष अपने लंबे से शरीर पर लदा बड़ा सा
सर झुकाए हर रहगुज़र से यही
फरियाद कर रहा है कि उसे काट दिया जाए
क्योंकि उसकी मायूस टहनियां अब किसानों की
लाश का वज़न उठाने लायक नहीं रहीं

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25 MAY 2018 AT 22:46


25 MAY 2018 AT 19:59


25 MAY 2018 AT 13:51


25 MAY 2018 AT 0:01

कभी रात को निकलो तो देखना खाली सी सड़कें
चाँद के छुपते ही बन जाती हैं जो काली सी सड़कें

न जाने कितने कुचले फूलों को नई जिंदगी देती हैं
ग़म के गुलफाम में अच्छी लगती हैं माली सी सड़कें

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24 MAY 2018 AT 22:28

कभी रख लेना रोज़ा यूँ तो अच्छा होता है
पर उम्र भर की भुखमरी अच्छी नहीं होती

हद में रहे अगर तो इससे अच्छा कुछ नहीं
हद से गुज़रे तो आशिक़ी अच्छी नहीं होती

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24 MAY 2018 AT 19:22

Coming Up With Something New !

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24 APR 2018 AT 0:54

Excerpt from Mashaal Releasing Tomorrow on inkStation

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