Mohit Pandey   (अनकहे शब्द)
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Leo
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Joined 26 December 2016


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5 OCT 2019 AT 18:29

वो एक किताब में रखे गुलाब की तरह है
रोज़ न देखूँ उसे तो वो भी मुरझा जाएगी

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20 SEP 2019 AT 10:15

ज़िन्दगी की दौड़ में जब कमाने के बहाने निकल आये
हम माँ को किसी दूसरे शहर में अकेला ही छोड़ आये

भूख लगी है या तबियत खराब है ये कौन पूछता है
हम दुआएं साथ ले आये, दवाएं घर पर ही छोड़ आये

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20 NOV 2018 AT 0:56

शीर्षक- "बच्चा ही अच्छा था माँ मैं"

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10 OCT 2018 AT 19:17

सबसे लड़कर लौटा हूँ
खुद से झगड़ना बाकी है

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11 SEP 2018 AT 22:24

शिकायतें बढ़ती गयीं , तज़ुर्बा घना हो गया

बच्चा ही अच्छा था माँ मैं क्यों इतना बड़ा हो गया

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2 JUN 2018 AT 1:51

बेशकीमती बोसों का सुख छोड़ आया हूँ
ऐ ज़िन्दगी मैं घर से कमाने बाहर आया हूँ

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14 MAY 2018 AT 9:48

उतर गई सबकी प्रोफाइल से माँ की तस्वीर

ममता भी कमबख्त तारीखों पर बयाँ होती है

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7 MAY 2018 AT 14:59

गरीबों का किताबों में अब ज़िक्र कहाँ आता है
शहर पहुंच लौट कर  कोई  गांव  कहाँ आता है

गली, कूचा,  चबूतरा, छत सब  तो था यहां पर
मकां तो हैं उस शहर में मगर घर कहाँ आता है

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15 APR 2018 AT 9:07

परत-दर-परत अपनी आंखों से तुम्हारा बदन जांचेगा
अपनी तेज़ चलती साँसों से खामोशियों को भी काटेगा
चलेगी नुकील उंगलियां उसकी जब जिस्म पर तुम्हारे
कतरा कतरा बुझेगी प्यास उसकी जब मर्दानगी बांटेगा

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13 APR 2018 AT 15:28

बंद पिंजरे में वो उड़ने का ख्वाब संजोये बैठी थी
'निर्भया' थी वो 'आसिफा',जो होश खोये बैठी थी
कुतरने लगे दरिंदे पर उसके, पर वो नादान थी,
मुर्दा समाज में मदद को पलकें बिछाये बैठी थी

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