Minakshi   (मिनाक्षी -एहसासनामा)
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Joined 11 April 2017


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22 MAY 2022 AT 20:00

मन से बंधकर,दिल से होते हुए अग्नि की प्रदक्षिणा पूरी करते हुए कुछ वचनों से उलझकर सांस तोड़ देते है शयनकक्ष की दीवारों में घुटकर,
कुछ रिश्तों की नियति ऐसी ही होती है।।

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23 MAY 2017 AT 22:15

As my problems grow
My courage breathes
Why do you ask me
what is in my fist
Why do not you
peep into my eyes
These problems
will stop you
My paths breathe
only in difficulties

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19 NOV 2021 AT 1:01

कुछ आग बड़ी ख़ामोशी से दुनिया तबाह करते हैं ,
तसव्वुर से जाते नही जो ज़ख्म वो बड़ा क़माल करते हैं

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1 NOV 2021 AT 1:19

माटी के मन का दीप गढ़ा
आंसूअन का फिर तेल भरा
बाती डाली मैंने स्मृतियों की
फिर आग उठाई मैंने हिय की
जीवन दीपावली का फिर प्रियतम
अंतिम बेला में अंतिम दीप जला

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25 OCT 2021 AT 22:40

मैने सोलह नही 26 से ज्यादा श्रृंगार किया था
पर बाज़ी मार ले गया मांग का पांच चुटकी सिंदूर

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5 OCT 2021 AT 10:55

मैं अपने जज़्बात दफ़न कर दूंगी
तुम मेरी खामोशियों को समझ जाओगे न

मैं तुम तक हर बढ़ते कदम को रोकूंगी
तुम मेरी बेबसीयों को समझ जाओगे न

मैं हर बार चाहत से इंकार करूंगी
तुम मेरे दिल के हालात समझ जाओगे न

मैं तुम्हे खुद से दूर जाने को कहूंगी
तुम मेरी मजबूरियों को समझ जाओगे न

तुम पूछोगे इश्क़ है?मैं पलकें झुका दूंगी
तुम मेरी ना में उलझी हां समझ जाओगे न

मैं ठहर जाऊंगी अपने दायरों में हर बार
तुम मेरी इन बेचैनियों को समझ जाओगे न

मैं इन्कार करूंगी तुम्हारे हर जज़्बात से
तुम धड़कनों के इकरार को समझ जाओगे न

मैं चुपके से देखूंगी हर ख़्वाब तुम्हारा
तुम मेरी बेरौनक हक़ीक़त समझ जाओगे न

मैं मुझ तक का हर रास्ता बंद कर दूंगी
तुम मेरे इकतरफा इंतजार को समझ जाओगे न

मैं बंद कर लूंगी आंखे किसी और की होकर
तुम कहीं किसी और में थोड़ा सा मेरे रह जाओगे न

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26 SEP 2021 AT 21:59

मैंने शाम के धुंधलके को आंचल से बांध लिया है जानते हो क्यों? क्योंकि ये मुझसे मेरी पहचान करवाती है और बताती है की मेरे एहसासों का सुरज अब ढल चुका है ।

हां मन के किसी कोने में स्मृतियों का झींगुर जब तब कुलबुला उठता है और फिर झींक देता है मुझे मेरी लाचारी के लिए "देखो कभी इतना डूब गई थी तुम एहसासों में अब मुझे तुम्हारे भीतर जीने के लिए हर रोज मरना पड़ता है" मौन हूं क्यों की कोई उत्तर नही मेरे पास उसके झींकने का । शायद मैंने ही उसे ये अवसर दिया है।

मैने आंखो को कहा अब आराम करे बरसात के बाद अभी आत्मा की जमीन नम और भुरभुरी सी बन गई है जब फिर से एक बार आत्मा तड़कने लगे तुम्हारे दिए अनगिनत चोटों से तो बरस पड़ेगी ! कौन सा भला मैने इसे बांध रखा है वचनों में ।

समाधिस्थ हैं अभी मेरे इस मन के सभी भाव जो विचारों के आवागमन से अब मोक्ष की ओर चल पड़े हैं मोक्ष की चाहत इनकी है , मेरी नही, मेरे जीवन के अंतिम बसंत की सौगंध ।

हां बस इतना कहना था तुमसे की तुम्हारे मिथ्यावचनों के महाप्रयाण के बाद इस संबंध को मुखाग्नि देने मत आना क्यों की मैं मुक्त होकर फिर से तुम्हारे सामने आने की संभावना से भी इंकार करती हूं ,मुझे यूं ही भटकना है अपने कर्मों और गलतियों का बोझ अपने कंधों पर उठाए हुए।
Copyright ©️
minakshi

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6 SEP 2021 AT 13:44

प्रेम के सौरमंडल में अपनी ही धुरी पर जन्मों से,
तुम्हारी स्मृति ग्रह के चारो ओर चक्कर लगाती हूं
क्या ये प्रमाण नही है? ,
मेरे विश्वासअक्ष के स्थायित्व का.........

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6 SEP 2021 AT 13:36

चलो थोड़ा और आगे बढ़ते हैं
खुद को कहीं दफ़न कर
तुम्हारे लिए मुस्कुराते हैं

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1 SEP 2021 AT 22:56

दीवारों में नही अंतस में कहीं दबा दिया जाता है प्रेम
जो अग्नि की प्रदक्षिणा को पूरा नही कर पाता
और सुलगता है कभी कभी अंगीठी के धुएं में
कभी झुलस जाता है तवे की रोटी में
और कभी डूब जाता है, प्याज काटते हुए
आंखो से बहते आंसुओं में

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