MD Bhuradia   ([©M D Bhuradia "बाग़ी"])
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Joined 13 March 2017


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Joined 13 March 2017
19 JAN 2021 AT 17:52

मैं जब सपनों में भी घर बनाती हूँ
तो एक चीज कभी नहीं भूलती
वो है खिड़कियाँ रखना
क्योंकि
पहरें दरवाजों पर होते हैं
खिड़कियाँ अछूती है
शायद ......

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24 DEC 2020 AT 21:07

"बँटवारा"

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23 DEC 2020 AT 18:33

रवायत दर्द में बाँहों में भर लेने की थी
उन्होंने हाल पूछा और रुख़्सत कर दिया ।।

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18 DEC 2020 AT 15:19

"मेरी देवी "



शेष अनुशीर्षक में 🙏🙏

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5 DEC 2020 AT 18:10

उसे प्रेम में बालक होना था
ताकि वो पा सके सारा स्नेह
और
मुझे प्रेम में माँ होना था
ताकि मैं दे सकूँ सारा स्नेह

बस यही अन्तर है
पुरूष और स्त्री के प्रेम में ।।

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15 NOV 2020 AT 10:38

हद होती है ख़ुद के मिटने की भी
दरिया आखिर कब तक दरिया रहता ।।

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28 OCT 2020 AT 10:00

ज़िन्दगी से ऊबने वालों , सुनो तुम
क़ब्र तक में मुड़ गये है पाँव मेरे ।।

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26 JUL 2020 AT 19:39

बरसों आँखों में रक्खा जिसका चहरा
वो चहरा ढूँढ रहा है दूजा चहरा

इतना दुख है मेरे अन्दर मत पूछो
कि बुरा लगता है उसका हँसता चहरा

समझा कैसे पत्तें ज़र्द हुये होंगें
बाद तुम्हारे जब देखा अपना चहरा

कि अना की हद देख उसे दूर किया है
जो था रातों में जुगनू जैसा चहरा

हफ्ते भर भी याद नहीं रह पाये जो
अब तक यादों में है वो सादा चहरा

ऐक दफ़ा उसने चूम लिये थे आरिज़
बाद कभी फिर ना रहा ये चहरा चहरा

कि खुदा मैं उसके साथ रहूँ या ना रहूँ
गुलशन सा मुस्काये वो तनहा चहरा ।।

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10 JUL 2020 AT 19:07

अपाहिज़ मज़हब को
ज़रूरत होती है दूसरे मज़हब की
जिसकी मुण्डी तोड़ कर
उसकी पीठ पर सवार हो सके
वो खुश होता है
दूसरे के बदन को
पैरों तले देख कर
बैशाखी कहना अपमानजनक है ना
ख़ैर
ऊपर होना किसे नहीं भाता
दूसरे को रौंदकर तो और भी ।।

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9 JUL 2020 AT 17:08

"पशु और औरत"

जानते हो पशुओं को "बांगरुँ" क्यूँ बोलने लगते है
क्यूँ अचानक से वो लगने लगते है आवारा
वो जब दूध देने से इन्कार कर देते है
इन्कार कर देते है हमारे बनाये कायदों पर चलने से
वो खूँटें पर बँधने के बजाय चुन लेते है आज़ादी
वो खुद घूमना चाहते है धरती की कोने से दरिया के किनारे तक
वो देखना चाहते है कि उनके पैर दौड़ना भूल तो नहीं गये
वो सींगों में उछालना चाहते है रेत आसमाँ की तरफ़
वो नाक में नकेल की जगह नथूने फुला कर दुश्मन को ललकारना चाहते है
अब वो चारदीवारी जो उसको हिफ़ाज़त के नाम पर दी गई थी
लांघ लेना चाहते है
अपने चारे और पानी का वक़्त वो खुद तय करना चाहते है

और उसकी ये समाज की रवायतों से अलग चलने की चाहतें हमें हज़म नहीं होती
करार दे दिया जाता है उन्हें बांगरुँ का
ठीक वैसे ही
जैसे आज़ादी पसंद औरत को करार दे दिया जाता है
"बदचलन" होने का .......

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