Manpreet Mannu   (मनप्रीत कौर 'मन')
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खामोश सी एक कविता . ...
Joined 30 March 2017


खामोश सी एक कविता . ...
Joined 30 March 2017
14 SEP 2023 AT 10:13

गंगा सी है पावन लगती
माँ के माथे की बिंदी है
संस्कारों की सुंदर थाती
प्यारी ये भाषा हिंदी है|

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं💐💐

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7 SEP 2023 AT 13:57

यशोदा का लला है, देवकी माँ कोख जाया है
अंधेरे से रिहा होकर, उजाला लौट आया है
खुले सब द्वार स्वागत में, जुटे यमुना धरा अंबर
बजे ढोलक- नगाड़े नंद घर आनंद छाया है

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6 APR 2023 AT 7:24

रमे राम में वे सदा, राम भक्त हनुमान
राम सिया हिय में बसे, नहीं जगत का भान

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25 JAN 2023 AT 12:43

बोझ ढोते ढोते
पाकर सब कुछ
खोते-खोते
भावों की गठरी
दरक ही जाती है
रेत सरक ही जाती है

संभालते संभालते
रोकते टोकते
थामते फिसलते
रेत सरक ही जाती है

ठहराव कहाँ भाता है
इस पुल , उस पुल
बहते बहते
चंचल , मदमस्त
नदी रूक नही पाती है
रेत सरक ही जाती है

पहिया समय का
निस-दिन घूमें
सुखों-दुखों की
धारा चूमे
गाड़ी रूक नहीं पाती है
रेत सरक ही जाती है

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14 NOV 2022 AT 17:53

नभ को जो छू सके, मन ऐसा एक परिंदा रखना
इठलाए बचपन मुस्कानों में, मासूमियत जिंदा रखना . ...

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6 OCT 2022 AT 11:23

ग्रामा- एक अनुरागिनी
कवि -राजकुमार 'राज'
पुस्तक प्रेमी अवश्य पढ़ें

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26 SEP 2022 AT 11:47

चुने वो पुष्प भावों के, पिरोती हार शब्दों का
कुशल है हर विधा में जो, मिला उपहार शब्दों का
पुकारे नाम वो जब भी, सुशोभित मंच हो जाता
लिखे जब भजन माँ के, हुआ श्रृंगार शब्दों का।।

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14 SEP 2022 AT 13:48

नुक़्ता लेकर उर्दु से, चंद्रबिंदु का अभिमान रखती हूँ
कलम से काफ़िये लिखकर, रस, छंद का विधान रखती हूँ
सबद, गुरूवाणी, अजानों , प्रार्थनाओं सी है जो पावन
जुबाँ पर वो हिंदी दिल में हिंदुस्तान रखती हूँ।

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5 JUN 2022 AT 13:51

धरा गगन से कह रही, अब न हरी यह देह
शहर बढ़े, जंगल घटे, नहीं नदी से नेह।

साँसे भी मंहगी हुई, बिकता है अब नीर
पंछी को भाती नहीं, बदली सी तस्वीर।

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21 MAR 2022 AT 21:13

समय संग बह चलें, नम्र सरिता हो जाऍं
करें कहे बिन बयाँ, चलो कविता हो जाएँ।।

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