यशोदा का लला है, देवकी माँ कोख जाया है अंधेरे से रिहा होकर, उजाला लौट आया है खुले सब द्वार स्वागत में, जुटे यमुना धरा अंबर बजे ढोलक- नगाड़े नंद घर आनंद छाया है
चुने वो पुष्प भावों के, पिरोती हार शब्दों का कुशल है हर विधा में जो, मिला उपहार शब्दों का पुकारे नाम वो जब भी, सुशोभित मंच हो जाता लिखे जब भजन माँ के, हुआ श्रृंगार शब्दों का।।
नुक़्ता लेकर उर्दु से, चंद्रबिंदु का अभिमान रखती हूँ कलम से काफ़िये लिखकर, रस, छंद का विधान रखती हूँ सबद, गुरूवाणी, अजानों , प्रार्थनाओं सी है जो पावन जुबाँ पर वो हिंदी दिल में हिंदुस्तान रखती हूँ।