Manish Sharma   (BetterCallManish)
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Lawyer
Sapiosexual
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Joined 21 January 2017


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30 APR 2023 AT 2:37

कुछ लोग यूं मिलते रहे इस सफर ए जिन्दगी में,
कुछ वापस लौट गए, कुछ साथ ही फासलों में सिमट गए

कुछ फासलों का फासला सा रह गया था बस,
और कुछ फासले ज़िंदगी के सफर में मिट गए।

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3 DEC 2019 AT 23:05

वो तो कश्तियों में नज़ारा देखते हैं
उन्हें क्या पता फर्क नज़र और नज़ारे का

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2 DEC 2019 AT 23:55

इस गुनाह को आज हम यूं फिर से तकते रह गए,
उस लड़की पे ही हम क्यूं ताने से फबते रहे।
कर गुजरना था उसे कुछ ताने सुनने से भी ज्यादा,
पर किसे पता था भूल जाएंगे वो लोग अपनी मर्यादा।।

रख दी चौखट पे यूं उसकी,
लाश जो बची नहीं।
माँ जो भरती रही सिसकी,
बेटी उसकी बची नहीं।।

शायद थोड़े ताने और ही कस दिए होते,
आख़िर इस तरह तो ना रोते...

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10 MAR 2019 AT 10:32

As the day passes,
As the wind throttles,
Deep down your body
You still be the same.

Crossing breezes and struggling life,
You have faced it all,
From the hungry bellies,
To the scarce resources
You have been the constant.

Days will come, when you can show the world
Though the life has been unfair, it will be unfair against the world, but not for you.

Dawn to dusk, each day
I have seen you putting your efforts every way

As the years passes,
As the success reaches
Don't let the pride overcome you
You still be the same.

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10 JUL 2018 AT 19:48

शहर और गांव में फर्क सा है कुछ,
एक अलग अपनापन सा है कुछ
इधर शाम नहीं ढलती
उधर दिन नहीं ढलता।

दूर से हो गए है इस गांव की मिट्टी से,
अब तो रास आने लगी है शहर की ठोकरें
स्वेच्छा से नहीं हो रहा यह सब कुछ
बस ज़िन्दगी की भाग दौड़ में जरूरत सी हो गई है।



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30 JUL 2017 AT 9:52

उन बिखरी यादों के कोनों से
उन सहमी आँखों के साये से
जब झांकती है ये नज़रें
तो दहल उठती है वो दिल की धडकनें
काँप उठती है रूह तक मेरी
मगर फिर से एक ख्याल आता है मुझे
और मेरे इस नासमझ से दिल को
की आतंकवाद तो मोहब्बत की तरह ही है
दिल एक दफ़ा टूटता है, एक दफ़ा जुड़ता है
मगर एक चोट सी हमेशा रहती है।

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24 JAN 2017 AT 23:50

उस शाम भी,
थका सा दफ़्तर से ज्यों ही आया
माँ ने चार घंटियाँ कर दी थी मेरे मोबाइल पर।

फिर से वही सवाल, "खाना खाया क्या? "
उलझन में , थोड़ी झिलमिलाहट से जवाब दे दिया,
"हाँ,खा लिया", और टाल दिया कल तक माँ को।

थोड़ी देर बाद अहसास सा हुआ
क्या सच में जानना चाहती है वो ये,
या कुछ कचोटते मन से अनकहे सवाल पूछने की कोशिश थी उसकी

सालों गुज़र गए, लेकिन वो सवाल ज़ेहन में अब भी ज़िन्दा है,
"खाना खाया क्या ? "

शायद वो तीन शब्द तुम्हारे मुझे अपना बनाने के थे, और मैंने अनसुने से कर दिए उन शब्दों के पीछे छुपे एहसास को ।।

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24 JAN 2017 AT 23:30

वो ताकती थी जीवन के उन अधेड़ बुने सपनों की ओर,
थामे कन्धों पे बोझ ज़माने का,
थमने न सका वो सफ़र उसका,
जो हासिल हुआ अपना बचपन गवां कर

हो गया ज़माना भी मज़बूर अपने जालिम हरकतों पे,
जो ज़लीलियत को भी इज्ज़त देने लगा
गर ना हुआ कम वो बोझ उसका,
ज़वानी भी लूटा दी अपना सब कुछ गवां कर

खामोशी भी बयां सा करने पड़ी थी
उन नाज़ुक से होठों से
कर्ज़ जो चुकाना था उसे,
अपने लड़की होने पर

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23 JAN 2017 AT 1:10

उन बिखरी यादों के कोनों से
उन सहमी आँखों के साये से
जब झांकती है ये नज़रें
तो दहल उठती है वो दिल की धडकनें
काँप उठती है रूह तक मेरी
मगर फिर से एक ख्याल आता है मुझे
और मेरे इस नासमझ से दिल को
की आतंकवाद तो मोहब्बत की तरह ही है
दिल एक दफ़ा टूटता है, एक दफ़ा जुड़ता है
मगर एक चोट सी हमेशा रहती है।

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22 JAN 2017 AT 0:04

The Shivering body,
And ripped clothes.

Not because of dearth
But,
Of Savagery.

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