दिल ना उम्मीद नहीं,
नाकाम ही तो है
लम्बी है गम की शाम,
मगर शाम ही तो है।
कई अरसे से, अंगारों पर जल रही थी,
दिल के किसी कोने में जुलस सी गई थी,
पर, क्या हुआ,
वो आग के बाद, आखिर राख ही तो है,
आसान नहीं थी वो रातें,
जो तुमने बिताई तकिए के सिरहाने,
कभी आंसुओ से,
तो कभी उम्मीद के इंतजार में,
कोई बात नही,
आज ये गहरी रात है,
पर कल वापस नई सुभा भी तो है।
ढूंढ रहीं हो तुम ऐसी कविताएं,
जो दिल को छुके तुम्हे अपना बनाए,
कल तक जो एक खोज थी,
आज आंखो के सामने भी तो है।
खो दो आज खुद को,
इस नाकामयाबी और दर्द की महफिल में,
महफिल ही तो है,
तुम्हारी खुशियों का जश्न मनाना अभी बाकी है ।
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