राहगुज़र हूँ उन यादों की गलियों की,जो पड़ चुकी हैं ज़र्द किसी पुराने गुलाब के रंग-सी,जिसकी खुशबू आज भी जिंदा है,मेरे हर कलमे में बहती स्याही और लफ़्ज़ों में। - Khyati
राहगुज़र हूँ उन यादों की गलियों की,जो पड़ चुकी हैं ज़र्द किसी पुराने गुलाब के रंग-सी,जिसकी खुशबू आज भी जिंदा है,मेरे हर कलमे में बहती स्याही और लफ़्ज़ों में।
- Khyati