12 JAN 2017 AT 10:16

राहगुज़र हूँ उन यादों की गलियों की,
जो पड़ चुकी हैं ज़र्द किसी पुराने गुलाब के रंग-सी,
जिसकी खुशबू आज भी जिंदा है,
मेरे हर कलमे में बहती स्याही और लफ़्ज़ों में।

- Khyati