बित्ती भर तो दिखती हो.....
इतने शब्द कहाँ रखती हो ?
मैंने कलम से पूछा ...
ठोस वाले ....बहा देती हूँ
गीले वाले... सुखा देती हूँ
और ....
उड़ने वाले ....दबा देती हूँ
मैं ...अपने शब्द ...
तीन अवस्थाओं में धरती हूँ
कलम चूमना ....तो बनता था मेरा
हट परे ........झल्ली !
कहकर कलम ने आज फिर...
मेरा चुम्बन पोंछ दिया ...
पर ....वो कहते हैं ना ....
जो "छप "गया .....सो " छप" गया
- कल्पना पांडेय