हाँ, मुश्क़िलात मेहसूस होती है अक्सर !!!!
जब ज़िंदगी का सबसे सुलझा हुआ पैहलू भी उलझने लगे,
और कोई उसे सुलझाने के लिये तुम्हें झकजोर दे ।
जब क़ायनात का कोई भी सुकून तुम्हें शान्त न कर पाए,
और वो तिनका भर सा ख़याल ही, तुम्हें जीने पर मजबूर कर दे ।
जब हसरत दिल में इस जहाँ की हर खुशी हासिल करने की हो,
और उसे पाने की चाह बीच में ही दम तोड़ दे ।
जब तुम्हें ज़रूरत हो उस शख्स के हर्फ़-ए-ऐहसास की,
और वो उस वक़्त ही ज़िल्लत भरे शब्द, तुम्हारे आगे परोस दे ।
ओर हाँ, मुश्क़िलात होती हैं अक़्सर जब बहुत ढूंढने पर भी,
तुम्हें वो बीता हुआ पल न मिले ।
हाँ, मुश्क़िलात मेहसूस होती है अक्सर ।
पर ख़याल रखो, इन मुश्क़िलात से मत घबराना,
ये बेहतरीन ज़िंदगी है, इसे पूरी तरह पेहचान कर ही जाना ।
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