तुम एक यथार्थ हो
या मेरी कल्पना ,
सूक्ष्म ,स्थूल कोई भी रूप में हो
पर प्रमाण दो की तुम हो ?
यूँ ही कोई संरचना प्रकृति की ज़ाया नही होती
न ही होती है विफ़ल कोई योजना
ओस से लेकर कीट का अस्तित्व है जगत में
पर तुम्हारा अस्तित्व मुझसे है ।
मैं ही निर्माण करती हूं तुम्हारा
निराकार या साकार रूप गढ़ती हूँ मन में ।
विस्वास करती हूं तुम्हारी योजना पर
की तुम हो मेरे मन मे ।
ईश्वर का साक्षात्कार करती हूं
कर्म को साक्षी मान कर,
एक एक योजनाओं को साकार करती जाती हूं
सदैव मानती हूं कि तुम हो मेरे कर्म में।
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