कुछ गाने , कुछ सड़के, कोई मुंडेर हमें पुराने रिश्तों की याद दिलाते है ।
मैं उनमें रोज़ ज़िन्दगी का एक स्वाद चखता हूँ ।
अक्सर इन जगहों पे मैं अकेला ही घूमता हूँ,
बेवजह ही मैं उन मुंडेरों पे बैठता हूँ ,
चेहरे पे यादों के ठंडे थपेड़े महसूस होते हैं ।
हाँ, इन निर्जीवों में सजीव होने का सुकूँ महसूस करता हूँ ।।
अकेला होकर भी कुछ अधूरी रह गयी बातों को दोतरफा ही पूरी करता हूँ,
चाय तो ठंडी ही पसंद है, पर वो ठंडी चाय भी देर से खत्म करता हूँ,
हर लम्हा प्रत्यक्ष होता प्रतीत होता है,
हाँ , वो चाय की टपरी से सटा मुंडेर, मुझे हद से ज़्यादा पसंद आता है ।
गाने सुनते वक़्त रास्ते के पत्थर पे टक्कर मारते हुए आगे बढ़ता हूँ,
बीच में कोई मुँह बोला मित्र अगर टोक दे की , " कैसे हो ? "
मन में सिर्फ मुस्कान आती है, और जुबान पे मुस्कान में घुला , " ठीक हूँ "
अचानक से वर्तमान महसूस होता है ।
पत्थर के साथ - साथ भटकते यादों के कारवाँ पे भी विराम लगता है ।।
चल लेता हूँ उस मुँह बोले मित्र के साथ उसी मुंडेर पे चाय पीने,
बातें तो करता हूँ, पर उनमें बेफिक्री की कमी होती है ।
इतने में, अचानक से कोई बोल रहा होता है, " तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है । "
मैं भी कितने ही दिनों के बाद मुस्कुरा कर बोल रहा होता हूँ, " मुझे चाय ठंडी ही पसंद है ! "
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