शिक्षा के मंदिर में दंगे, ऐसा भारत कब सोचा? कुर्सी वाले हो गए नंगे, ऐसा भारत कब सोचा? शीशे तोड़े, सर भी फोड़े सब कुछ चकनाचूर किया इसके बाद में हर-हर गंगे ऐसा भारत कब सोचा?
चुपचाप से मेरा सारा आसमान छीन लिया, जमीं कर दी भारी, हर अरमान छीन लिया, किससे अब क्या कहूँ, सबके अपने नज़रिए हैं, पापा को छीनकर तूने पूरा ख़ानदान छीन लिया।
तिरे हर हर्फ़ को खुदा का फ़रमान माना, दिल ने कुछ ना कहा बस तुझे अरमान माना, तिरे वास्ते होगा मज़ाक़ तो मैं क्या करूँ, मैंने तो तेरे कहे को ही गीता औ कुरआन माना!