रिश्तों के झूठे किरदारों से परे भीतर के नायक को पहचानते हैं पर्दा गिर जाने से पहले खुद की भूमिका निभाते हैं अपने अंदर के बुद्घ से खुद को ज्ञान दिलवाते हैं
मेरे व्यक्तिव का अहम हिस्सा हैं मम्मी की कतरनें गठरियों में भरी, स्टोर के भीतर एक खज़ाने सी लगती थीं कितनी रंग बिरंगी, फूल, तितली, रंगोली की तरह भर देती थी रंग मेरी इमैजिनेशन में
मिलने और बिछड़ने के बीच कई युग बीत जाते हैं कई बार मरना पड़ता है कई बार मारना पड़ता है अपने प्यार को, सम्मान को ख़ुशी को, अभिमान को फिर भी वो रिश्ता मर नहीं पाता बस रिसता रहता है एक नासूर सा और चुभता रहता है एक शूल सा