Ehsan Philosopher   (ehsanphilosopher)
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Joined 1 August 2018


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7 HOURS AGO

यदि सभी धर्मो की शिक्षा दी जाए मगर शिक्षकों द्वारा,
तो मानना आसान होगा।
न संख्या से धर्म बड़ा होगा न विवाद।

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12 HOURS AGO

प्रकृति ने जन्म दिया
और मरना उसी के गोद में है,
तो भला उससे दूरी क्यों!

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14 APR AT 14:42

गरीब से अमीर तो बन जा सकता है,
लेकिन जाति में!
क्यों?

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14 APR AT 8:18

ज़िंदगी सुविधा में नहीं,
सुविधा से गुज़रे।

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13 APR AT 20:09

लोगों की जुम्बीस को खुशी का नाम देते हैं।
नसीब में ही नहीं करके सलाम देते हैं।
मगर यह खुशी की बला को कह दे हम।
नया जो रंग चढ़े उसका बाम देते हैं ।
घरी वह भी है यह भी है और हम भी हैं ।
न जाने किसके आने का बयान देते हैं

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13 APR AT 19:54

अंबेडकर नाम तो याद होगा ना।
बस नाम याद कीजिए।

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13 APR AT 10:23

दफ्तर में निचोड़े जाते हैं।
सूख के घर को जाते हैं।
फिर खिलने की कोशिश में,
थोरे से ही जीते और थोड़े मर जाते हैं।

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13 APR AT 10:15

आप लड़ाई मनुष्य और तकनीक के बीच है क्योंकि गुलाम अब आका बन चुका है!

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13 APR AT 10:12

मुस्कुराना भी अब अदाकारी है।
इसकी भी बहुत मारामारी है।
होठों के बिचकने में कई मौसम दिखते हैं।
मुकाबला ये है कि कौन किस पर भारी है।

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13 APR AT 10:08

अंबेडकर एक ऐसी फिलासफी है जिसे इश्क तो करते हैं, मगर इस्तेमाल नहीं करते हैं।

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