मैं अगर पढ़ाऊँ इश्क़ का पाठ,वो पढ़ना चाहती हैं मेरी मोहब्बत में पागल, वो सूली चढ़ना चाहती हैं पूछती है मुझे- कि तुम्हें इश्क़ हुआ कभी किसी से मैं बढाऊँ अगर हाथ इश्क़ का,साथ बढ़ना चाहती हैं
नदी की तरह ईश्क़ में, उमड़ जाया करती हैं बेफिक्र है पर,उसूलों पर अड़ जाया करती हैं भोली भाली सूरत, दिल की बहुत हसीन हैं मुझे मनाने की ख़ातिर,मुझसे लड़ जाया करती हैं