28 MAR 2017 AT 6:00

गर्मियों में कुछ चीज़ें नहीं बदलती, जैसे के सर पर दुपट्टा बाँधे डाकू ज़ैल सिंह सी स्कूटी पर सवार कन्याएँ, चौबे जी का एक्ससेसिव ओवर कंपनसेशन विथ अजीब से सनग्लासेस और टोपियाँ, और बर्फ के गोले की चुस्कियाँ ।
आजकल बयार भी ऐसी थी के पान सुपारी से इतर चौबे का मूड लफंदरगिरी वाली चोंचली हरकतों में ज़्यादा था । लू से बचने को सर बाँधे हरे रंग के चश्मों में टी शर्ट और निक्कर पहने राजू के ठेले संग खड़े रहते । राजू तो डेढ़ शाणा था ही, चौबे जी की आकृति को ही अपने विज्ञापन जैसा लेता था । फ्री के गोले चौबे को मिलते और आने जाने वालों को कुछ ठहाके।
इससे पहले आप हमारे ह्यूमर लेवल को जज करें, मैं बता दूं के चौबे का इलेक्शन जीतने का सपना पूरा न हुआ लेकिन पहचान बन गयी थी मोहल्ले में । और तो और आने जाने वालों पर उनकी गहन टिप्पणियाँ भी कायम थी । आज उन्होंने जयपुर सी सी डी वाला काण्ड देखा था तो बोले,"क्या बताएं गुरु, पहले छापा हम मारते थे, उनके घर के नीचे, इंतज़ार होता था और फिर तकरार, आज तो सीधे थप्पड़ पड़ते हैं, कल इसलिए मिसेज़ चौबे से एक्स्ट्रा दाल भी नहीं माँगी खाने में, क्या पता वो भी मज़े में एक दो रसीद दें।" फिर वो घोड़े की तरह अपने रंग बिरंगे दांत निकाल के हँसने लगे।
धूप तेज़ थी, मैं बस गोले के पानी को गिरते और मिट्टी में मिलते देख रहा था। नीचे सब एक ही रंग का था।

- CalmKazi