मेरे- तुम्हारे बीच सड़कों की गुज़ारिशें थीं, रेल की पटरियों का तिलिस्मी जंतर था, नदी की अठखेलियाँ थीं, पंछियों की चहचह का नेग था, केनी जी की धुनों की दहक थी.
मेरे -तुम्हारे बीच कुछ साँवली साँझें थीं, गीली चिट्ठियाँ थीं, नज़्में थीं, हक़ था, झिड़कियाँ थीं, शिव का चबूतरा था, चाँद की गवाही थी, मनौती का लाल धागा था.
फिर मेरे-तुम्हारे बीच लोग भी थे, उनकी कुटिल चालें थीं, कानाफूसियाँ थीं, ग़लतबयानियाँ थीं.
हमारे बँटवारे से मालूम चला कि किसकी पाली में बुद्धिमानियाँ गयीं...
और किसके हिस्से अबोध प्रेम आया.
~ हीर
- बाबुषा