Baabusha Kohli   (बाबुषा)
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तुम सिकन्दर तीन दिन के
हम कलन्दर ज़िन्दगी के

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Joined 10 December 2016


तुम सिकन्दर तीन दिन के
हम कलन्दर ज़िन्दगी के

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Joined 10 December 2016
22 JUL 2019 AT 22:47

चंदा तारे
मौज मल्हारें
नदियाँ सागर
जिसके चाकर
जिसकी ख़ातिर
बुल्लेशाह की
तक़रीरें तक
घूमीं दर दर
बाहिर अंदर
सत् शिव सुंदर

ध्यान मदारी
सौ मन बन्दर
बिना डुगडुगी
नाच उठे जो

कहलाएगा
मस्त कलन्दर

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21 APR 2019 AT 6:29

आसमान में जितने सितारे हैं,
उतना तुम्हारा प्रेम;
मेरे लिए।

सितारों के बीच जितनी छूटी जगह है,
उतना मेरा प्रेम;
तुम्हारे लिए।

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7 OCT 2021 AT 7:08


उसके रूपकों में खिलते हैं बच्चे फूल समान
देवी की तरह विराजती है स्त्री
उसके बनाए मंदिरों में

अपनी कविता के बाहर वो मसल देता है फूल
और देवियों के मुकुट चुरा लाता है
भटकता फिरता है बेचैन यहाँ-वहाँ

उसकी मुक्ति नहीं है कहीं भी
सिवाय इसके कि वो किसी दिन
अपनी ही चुल्लू भर कविता में डूब मरे

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बाबुषा
जून, २०१५

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14 FEB 2021 AT 13:01


आज उनकी सालगिरह है।

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29 DEC 2020 AT 9:01

भक्त एक कोमल शब्द है,
अयोग्य के लिए इसका प्रयोग करना-
क्रूरता है।

क्रांति एक विराट शब्द है,
इसे महज़ बाह्य ढाँचे का बदलाव समझना-
संकीर्णता है।

प्रेम एक संकोची शब्द है,
भक्ति व क्रांति संभव कर लेता एक साथ
अकेले दम पैदा करता साहस, आस और विश्वास
कहता कुछ नहीं-

यह प्रेम की विनम्रता है।

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29 DEC 2020 AT 8:23

उतना प्रेम कभी नहीं मिल सकता
जितने की चाह है,
मगर इतना प्रेम हमेशा दिया जा सकता है-
जितने की चाह है।

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22 DEC 2020 AT 7:24

चूमना एक बारीक कला है-
जिसकी निपुणता की परख
होठों पर नहीं,

माथे पर होती है।

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20 DEC 2020 AT 8:49

‘तिलिस्म’ की पंक्तियाँ
‘प्रेम गिलहरी दिल अखरोट से।’


***
अपने पैने नाखूनों को कुतर डालो
मेरी तलाश में मुझे मत नोचो
एक नदी जो सो रही है भीतर कहीं
उसे छूने की चाह में मुझे मत खोदो

मत चीरो फाड़ो
कि मेरी नाभि से ही उगते हैं रहस्य
इस सुगंध को पीना ही मुझे पीना है

मुझे पा लेना मुट्ठी भर मिट्टी पाने के बराबर है
मुझमें खोना ही अनंत आकाश को समेट लेना है

स्वप्न हूँ भ्रम हूँ मरीचिका मैं
सत्य हूँ सागर हूँ मैं अमृत



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6 OCT 2020 AT 11:12

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21 JUN 2020 AT 14:41

मार्च,२०१५

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